श्री सूक्तम हिन्दी पुस्तक | Shri Suktam Hindi Book PDF


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श्री सूक्तम हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Suktam Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्री सूक्तम | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : ओमप्रकाश मिश्र शास्त्री | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : शिव संस्कृत संस्थान, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 20 MB है | इस पुस्तक में कुल 68 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्री सूक्तम" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shri Suktam | This book is written/edited by : Omprakash Mishra Shastri | This book is published by : Shiv Sanskrit Sansthan, Varanasi | PDF file of this book is of size 20 MB approximately. This book has a total of 68 pages. Download link of the book "Shri Suktam" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
ओमप्रकाश मिश्र शास्त्रीधार्मिक20 MB68



पुस्तक से : 

गुरुकृपा एवं सन्तसमागम ही ग्रन्थकी उपलब्धता का परिचायक हैं। निकट भविष्य में श्रीसूक्त के अन्य अनुभूत प्रयोग एवं श्रीसूक्त के प्रत्येक ऋचाओंका न्यास सहित अलग अलग प्रयोग विधि भी देनेका प्रयास करेंगे जिससे साधक अधिक से अधिक लाभान्वित हो सकें।

 

हिरण्यवर्णाम् इत्यादि पञ्चदश ऋचाओं वाले श्रीसूक्त के इन्दिरा, आनन्द और चिक्लीत ऋषि हैं। श्री यानी इन्दिरा प्रथम मन्त्रके ऋषि हैं तथा आनन्द और चिक्लीत शेप चतुर्दश मन्त्रोंके द्रष्टा हैं। ये तीनों इन्दिरा के पुत्र हैं। हिरण्यवर्णाम आदि प्रथम तीन ऋचाचोंका अनुष्टुप् छन्द है।

 

विष्णुर्विष्णुर्विष्णु श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणोह्नि द्वितीये प्रहरार्धे विष्णुपदे श्री श्वेतवाराह कल्पे। वैवस्व तमन्वन्तरे अष्टाविंशतित मे कलियुगे कलिप्रथमचरणे भूर्लो भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशे अमुकनाम्नि क्षेत्रे श्रीसूर्ये अमुकायने अमुकऋतौ।

 

 

अर्थ प्राप्ति के वैदिक एवं तान्त्रिक साहित्यमें असंख्य प्रयोग दिये गये है जिनके माध्यम से अर्थ प्राप्ति के श्रोतोकी प्राप्ति सम्भव है। किसी भी प्रयोगों एवं मन्त्र से सम्बन्धित देवता के प्रति जब तक पूर्ण आस्था एवं पूर्ण समर्पण भाव नही होगा तब तक पूर्ण फलकी प्राप्ति सम्भव नहीं है। अर्थ प्राप्ति के लिए ऋग्वेदोक्त श्रीसूक्त स्वयं सिद्ध है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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