श्रीविद्या साधना - डॉ. श्यामाकांत द्विवेदी हिन्दी पुस्तक | Shri Vidya Sadhana - Dr Shyamakant Dwivedi Hindi Book PDF

  

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श्रीविद्या साधना हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Vidya Sadhana Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्रीविद्या साधना | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ. श्यामाकांत द्विवेदी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखंबा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 140 MB है | इस पुस्तक में कुल 471 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्रीविद्या साधना" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shri Vidya Sadhana | This book is authored by : Dr Shyamakant Dwivedi | This book is published by : Chaukhamba Surbharati Prakashan, Varanasi | PDF file of this book is of size 140 MB approximately. This book has a total of 471 pages. Download link of the book "Shri Vidya Sadhana" has been given further on this page from where you can download it for free.


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डॉ. श्यामाकांत द्विवेदीधार्मिक,साधना140 MB471



पुस्तक से : 

‘श्रीविद्या' वेदों की प्राचीनतम रहस्य विद्याओं में से अन्यतम विद्या है। यह सिद्धियों का रत्नाकर एवं मोक्ष का अन्यतम साधन है। 'श्रीविद्या' श्री की विद्या है। इसमें निहित 'श्री' शब्द 'शकार, रकार, ईकार एवं बिन्दु' का कल्पवृक्ष है।

 

पौराणिक परम्पराकी दृष्टि से इसके द्वादश सम्प्रदाय और द्वादश उपासक हैं। इनका यन्त्र 'श्रीयन्त्र' कहलाता है। दश या अट्ठारह महाविद्याओं के दो कुल हैं। उनमेंसे एक 'काली कुल' है और वही दूसरा 'श्रीकुल' है। श्रीविद्या श्रीकुल से सम्बद्ध है।

 

उत्तर भारत में श्रीविद्या के प्रचलन की तो बात ही क्या, यहाँ तो सामान्यतः लोगोंको इनका नाम भी ज्ञात नहीं है। इस विद्याकी रहस्या त्मकता, उच्च स्तरीयता, अतिशय क्लिष्टता एवं अगम्यता के कारण समस्त उत्तर भारत में इसका प्रचार-प्रसार अवरुद्ध रहा।

 

 

यथार्थतः वे 'कामेश्वर' भी हैं और 'कामेश्वरी' भी है। बैन्दवस्थान में सहस्रदल कमल है और उसमें भी भगवती की पूजा एक आदर्श पूजा है। चन्द्रमण्डल से विगलित अमृतसे सिक्त श्रीचक्ररूपी त्रिपुराकी पुरी में पूजा करना ही यथार्थ पूजा है। बैन्दवपुर ही 'चिन्तामणि गृह' है। सामयिकों के मतमें इसी चिन्तामणि गृह में या सहस्रदल कमलमें भगवतीकी पूजा की जानी चाहिये। न कि बाह्य पीठ आदि पर।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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