श्रीमद् भगवद्गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र हिन्दी पुस्तक | Shrimad Bhagavad Gita Rahasya Athwa Karmyog Shastra Hindi Book PDF


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श्रीमद् भगवद्गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shrimad Bhagavad Gita Rahasya Athwa Karmyog Shastra Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्रीमद् भगवद्गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : लोकमान्य बालगंगाधर तिलक | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : रामचंद्र बलवंत तिलक | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 41 MB है | इस पुस्तक में कुल 942 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्रीमद् भगवद्गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shrimad Bhagavad Gita Rahasya Athwa Karmyog Shastra | This book is written/edited by : Bal Gangadhar Tilak | This book is published by : Ramchandra Balwant Tilak | PDF file of this book is of size 41 MB approximately. This book has a total of 942 pages. Download link of the book "Shrimad Bhagavad Gita Rahasya Athwa Karmyog Shastra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
बालगंगाधर तिलकधार्मिक41 MB942



पुस्तक से : 

भारत वासियों के वन्दनीय श्रेष्ठ पुरुष के पुत्रों को भी प्रत्यक्ष लूट लेनेवाले अजब महात्मा इस महाराष्ट्रमें विद्यमान हैं, बस इतनासा ही निरासत्य यदि भारतवर्ष के इतिहासमें खुद जाय, तो भी हम मान लेंगे कि हमें न्याय मिल गया। इस समय तिलक बन्धु गायकवाड वाडे में वैसी ही असहाय स्थिति में हैं।

 

स्व० तिलकजी अपना खानगी द्रव्य अपने स्वयं के नामपर बैंक में नहीं रखते थे। बल्कि केसरी आफिस के नामपर ही बैंकमें जमा करते थे और उनका सभी आर्थिक कार्य वहीं से चलता था। इस खानगी द्रव्य के कानूनी हक़दार तिलक बन्धु ही हैं, परन्तु वह भी इसी ट्रस्टमें शामिल कर दिया गया है।

 

वस्तुस्थिति इस प्रकार होने के कारण उपरिनिर्दिष्ट दोनों गृहस्थों ने मौकेपर ही तुंरत जान लिया कि  इसके अनुसार उनका भविष्यकालमें ट्रस्टी होना असंभव है। और इस कठिनाई को दूर करने के लिये केसरी और मराठाको सार्वजनिक संस्था करनी है। इसलिए तुम्हारा उसमें कोई भी हितसम्बन्ध नही रहेगा।

 

 

वहाँ से लौट आने पर कई सप्तकों तक राह देखके भी, मण्डाले के कारागृह के अधिकारी के स्वाधीन की हुई गीतारहस्यकी हस्तलिखित पुस्तक जल्दी वापिस करने का सरकार का इरादा दिखाई नहीं पड़ा। जैसे जैसे दिन व्यतीत होने लगे वैसे वैसे सरकार के हेतुओं के लिये लोग अधिकाधिक साशंक होते चले गए। कोई कोई तो आखिर स्पष्ट रूप से ही कहने लगा था।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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