श्रीमद भागवत महापुराणम (मूलमात्रम) पीडीऍफ़ | Srimad Bhagwat Mahapuranam (Moolmatram) PDF

  


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श्रीमद भागवत महापुराणम (मूलमात्रम) हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Srimad Bhagwat Mahapuranam (Moolmatram) Hindi Book



इस ग्रन्थ का नाम है : श्रीमद भागवत महापुराणम (मूलमात्रम) | इस ग्रन्थ के मूल रचनाकार हैं : महर्षि वेदव्यास | इस ग्रन्थ के संपादक हैं : चिरञ्जीवी खतिवडा | इस ग्रन्थ के प्रकाशक हैं : महेश संस्कृत गुरुकुलम देवघट्टधाम, नेपाल | इस ग्रन्थ की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 10 MB है | इस पुस्तक में कुल 1821 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्रीमद भागवत महापुराणम (मूलमात्रम)" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Srimad Bhagwat Mahapuranam (Moolmatram) | This book is originally written by : Maharshi Vedvyas | Editor of this book is : Chiranjeevi Khatiwada | This book is published by : Mahesh Sanskrit Gurukulam, Devghattadham, Nepal | PDF file of this book is of size 10 MB approximately. This book has a total of 1821 pages. Download link of the book "Srimad Bhagwat Mahapuranam (Moolmatram)" has been given further on this page from where you can download it for free.


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 चिरञ्जीवी खतिवडाधर्म, भक्ति 10 MB1821



पुस्तक से : 

श्रीमद्भागवतमहापुराणाभिधमद्वितीयं भगवच्चर्चाप्रकाशोज्ज्वलं ग्रन्थरत्नं व्यरचि। इति अस्माकं लब्धमानुषजन्मनां गृहीतविग्रहाणां महते हर्षाय। यथाकथमपि पुण्यपुञ्जपरिपाकेन मानवजीवने लब्धिपथमागतेऽपि न तस्य जीवनस्य याथार्थ्यं रहस्यं च बोधमानाः स्म, तथा बोधने प्रयासञ्च अकुर्म.

 

तस्मादयि! भगवद्भक्ता विस्मृतात्मवैभवा बान्धवाः! आत्मबोधाय यत्नो विधीयताम्। अनित्ये जगति स्थित्वा ज्ञानस्य वैराग्यस्य च यथासम्भवं सरणिः स्वीक्रियताम्। वैराग्यञ्च मोहशोकादिराहित्यात्मकम् तत एव दुःखविनाशः सुखलाभश्च भवति। वस्तुतः सुखमात्मन्येवास्ति तस्यावरणभङ्गेन प्रकटनमेव भवति।

 

अतः गेहे गेहे जने जने एतस्य ग्रन्थस्य भगवद्भक्त्यभिषिक्तस्य श्लोकस्य अवस्थानं स्यादिति कामनया मया भागवतशास्त्रस्य दूरजङ्गमयन्त्राय सम्पादने गुरुकृपया तथा भगवदिच्छयैव च प्रयासः कृतः । एतेन च दूरजङ्गमयन्त्र (मोबाइल) स्यापि एकः सदुपयोगः भवति।

 

 

अतः पठने भवद्भ्य: सरलताया बोधो भवतीति आशासे। बह्वायासेन सम्पादितेऽप्यत्र अनेकास्त्रुटयः पुष्पविराजिते उद्याने कण्टकवत् सन्त्येव खलु। तथापि गुणग्राहिभिर्भवद्भिः पाठकैः एतत् सर्वं क्षम्यतामिति प्रार्थये। किं बहुना भगवतो भागवतस्यापि महिम्नि कथ्यमाने मथ्यमानेऽपि मया न वाग्विलासेन ग्रन्थं ग्रन्थविषयं च संकोचयितुं पार्यते।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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