सूरज का सातवां घोड़ा - धर्मवीर भारती हिन्दी पुस्तक | Suraj Ka Satvan Ghoda - Dharmaveer Bharati Hindi Book PDF

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सूरज का सातवां घोड़ा हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Suraj Ka Satvan Ghoda Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : सूरज का सातवां घोड़ा | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : धर्मवीर भारती | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB है | इस पुस्तक में कुल 46 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "सूरज का सातवां घोड़ा" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Suraj Ka Satvan Ghoda | This book is written by : Dharmaveer Bharati | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 1 MB approximately. This book has a total of 46 pages. Download link of the book "Suraj Ka Satvan Ghoda" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
धर्मवीर भारतीउपन्यास1 MB46



पुस्तक से : 

धर्मवीरजी में एक विशेषता है। वी केवल एक अच्छे, परिश्रमी और रोचक लेखक ही नहीं हैं बल्कि वे नई पौधके सबसे मौलिक लेखक भी हैं। मेरे निकट यह एक बड़ी विशेषता है, और इसीकी दाद देने के लिए मैंने यहाँ वे दोनों भूलें करना स्वीकार किया है।

 

ये सब बातें जो मैं बोल रहा हूँ, इन्हें केवल वही पाठक समझ पाएंगे जिन्होंने भारतीजीकी अन्य रचनाएँ भी पढ़ी हैं, जैसे मैंने पढ़ी हैं। जिन्होंने भी वो नहीं पढ़ीं है वे सोच सकते है कि इस तरह की साधारण बातें कहनेसे क्या लाभ जिनकी कसौटी प्रस्तुत सामग्री से न हो सके?

 

'सूरज का सातवाँ घोड़ा' अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र है। जैसे उस समाजकी अनंत शक्तियाँ परस्पर संबद्ध और आश्रित हैं, उसी प्रकार से उसकी कहानियाँ भी है। चित्रों में जैसे कई घटनाओंका चित्रण करके उसकी वर्णनात्मकताको संपूर्ण बनाया जाता है।

 

 

वह चित्र सुंदर या सुखद नहीं है, क्योंकि उस समाजका जीवन वैसा नहीं है और भारती ने चित्रको सच्चा उतारना चाहा है। पर वह असुंदर या अप्रीतिकर भी नहीं है, क्योंकि वह मृत नहीं है। उसमें दो चीजें हैं जो उसे इस खतरेसे उबारती हैं और इनमें से एक भी काफी होती है। पहला तो उसका हास्य, भले ही वह वक्र और कभी कुटिल भी हो। और दूसरा एक अदम्य और निष्ठामयी आशा।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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