वाराही बृहत संहिता पुस्तक पीडीऍफ़ | Varahi Brihat Samhita Book PDF



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वाराही बृहत संहिता हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Varahi Brihat Samhita Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : वाराही बृहत संहिता | इस पुस्तक के मूल रचनाकार हैं : आचार्य वराह मिहिर | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : खेमराज श्रीकृष्णदास प्रकाशन, बम्बई | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 67 MB है | इस पुस्तक में कुल 356 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "वाराही बृहत संहिता पुस्तक" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Varahi Brihat Samhita | This book is originally authored by : Acharya Varah Mihir | This book is published by : Khemraj Shrikrishnadas Prakashan, Bambai| PDF file of this book is of size 67 MB approximately. This book has a total of 356 pages. Download link of the book "Varahi Brihat Samhita" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
 आचार्य वराह मिहिरधर्म, ज्योतिष 67 MB356



पुस्तक से : 

वाराही संहिता ज्योतिष का प्रधान ग्रंथ है। इसके रचयिता वराहमिहिराचार्य आदित्य दास के पुत्र थे जो कि अवन्ती-निवासी थे। वराहमिहिराचाय ने अपने पिता से समस्त शास्त्र को पढकर कपित्थ नगर में जाकर सूर्यभगवान्‌की तपस्या की और वर पाया। जो कुछ भी हो हमको इस ग्रंथकी भूमिका में वराहमिहिर और सूर्यसिद्धांत के बनानेवाले समय का निर्णय करना है।

 

आश्लेषा के शेषाद्ध में दक्षिणायन और धनिष्ठा की आदिमें रविका उत्तरायण निश्चय किसी कालमें आरंभ होता था क्योंकि पूर्व शास्त्र में इसी प्रकारका लेख है ||१|| संप्रति रविका दक्षिणायन कर्कट की आदि में और उत्तरायण मकर की आदि में आरंभ होता है. अतएव प्राचीन अयन के अभाव में उसका परिवर्तन भलीभांति मालूम होता है.

 

धनिष्ठा की आदि से रेवती के पूर्वार्द्धतक शिशिर काल है। रेवती के शेषाद्धं से रोहिणी के शेष तक वसन्तकाल है। मृगशिरा की आदि से आश्लेषा के पूर्वार्द्धतक ग्रीष्मकाल है। आश्लेषा के शेषार्द्ध से हस्तके शेष तक वर्षाकाल है। चित्रा की आदि से ज्येष्ठा के पूर्वाद्धंतक शरत्काल है। ज्येष्ठाके शेषार्द्ध से श्रवण के शेषपर्यंत हेमंत काल होता है।

 

 

वराह मिहिर के समय में सब ऋतु राशि की आदि में आरंभ होती थीं, अतएव राशि चक्र के २७० अंश तक होने पर उनके समय में शिशिर ऋतु का आरंभ हुआ था। अर्थात् पराशर संहिता के लिखनेवाले के समय से वराह के समय तक अयन (२९३. २०-२७०) = २३ अंश २० कला पहले अग्रसर हुआ है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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