वेद का स्वरूप और प्रामाण्य हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ved ka Swaroop aur Pramanya Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : वेद का स्वरूप और प्रामाण्य | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : श्री स्वामी करपात्री जी महाराज | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री धर्मसंघ शिक्षामंडल, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 125 MB है | इस पुस्तक में कुल 289 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "वेद का स्वरूप और प्रामाण्या" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
Name of the book is : Ved ka Swaroop aur Pramanya | This book is authored/edited by : Shri Swami Karpatriji Maharaj | This book is published by : Shri Dharm Sangh Shiksha Mandal, Varanasi | PDF file of this book is of size 125 MB approximately. This book has a total of 289 pages. Download link of the book "Ved ka Swaroop aur Pramanya" has been given further on this page from where you can download it for free.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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श्रीपाद दामोदर सातवलेकर | धर्म, अध्यात्म | 125 MB | 289 |
पुस्तक से :
मनुष्य अपने व्यक्तित्वकी पूर्णता के लिए भूतल पर ती होता है। व्यक्तित्व की पूर्णता उसके सभी पक्षों के पोष पर निर्भर है। उसके विभिन्न पक्षों में प्रमुख ये हैं - आध्यात्मिक, नैतिक एवं भौतिक. प्रथम एवं तृतीय का सम्बन्ध व्यक्ति से है और द्वितीय का समष्टि से । अर्थात् वैयक्तिक एवं सामाजिक उभवपक्षीय पूर्णता ही मनुष्य का प्राप्य है।
इस विवाद में किस मत की मान्यता स्वीकार हो और किसके सिद्धान्त व्यक्तित्व की पूर्णता के लिएकार्यान्वित किये जायं, यह एक बीहड़ समस्या है। विचार से 'दृष्ट' एवं 'दृष्ट' के ऊपर स्था रखनेवाली उक्त दो विचारधाराओं में दृष्टवादी धारा के दोष बहुत स्पष्ट हैं। दृष्टवादी धारा 'अर्थ' एवं 'काम' का ही परम पुरुषार्थ माननेवाली धारा है।
समस्या यह है इस पूर्णत्व की प्राप्ति के लिए मनुष्य अपना यत्न किस दिशा में बढ़ाये? इस प्रश्न का उत्तर देनेवाले श्राज प्रमुख रूप में दो दल–भौतिकवादी एवं श्राध्यात्मवादी जागरूक हैं। एक दृष्ट को सर्वस्व मानता है, दूसरा 'अदृष्ट' को एक अपने अन्वेषण, परीक्षण एवं समीक्षण से प्राप्त तथ्यों को ही सब कुछ मानता है, दूसरा प्राप्त वचन पर विश्वास करता है।
इस प्रकार श्रष्टवादी धाराके ही विचार मानवीय व्यक्तित्व विकासके साधन हो सकते हैं—यह निश्चित है। श्रदृष्टवादी धारा के अन्तर्गत भी अनेकानेक प्रभेद हैं, जो अपने-अपने प्राप्त जनप्रणीत ग्रन्थोंके अनु सार जीवनयात्रा करने में श्रेय एवं प्रेयकी प्राप्ति, व्यक्तित्वकी पूर्णता स्वीकार करते हैं। परन्तु एक वेदको छोड़कर शेष सभी प्राप्त वचन ऐतिहासिक पुरुषोंसे बुद्धिपूर्वक प्रणीत हैं।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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