वैदिक नित्यकर्म विधि हिन्दी पुस्तक | Vedic Nityakarm Vidhi Hindi Book PDF


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वैदिक नित्यकर्म विधि हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vedic Nityakarm Vidhi Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : वैदिक नित्यकर्म विधि | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : महर्षि दयानंद सरस्वती | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : आर्य प्रतिनिधि सभा जम्मू कश्मीर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 63 MB है | इस पुस्तक में कुल 100 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "वैदिक नित्यकर्म विधि" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Vedic Nityakarm Vidhi | This book is written/edited by : Maharshi Dayanand Saraswati | This book is published by : Arya Pratinidhi Sabha Jammu and Kashmir | PDF file of this book is of size 63 MB approximately. This book has a total of 100 pages. Download link of the book "Vedic Nityakarm Vidhi" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
महर्षि दयानंद सरस्वतीधार्मिक63 MB100



पुस्तक से : 

यदि दादा दादी भी साथ हों तो उनकी सेवा करनी चाहिए। मनु कहते हैं कि माता पिता अपनी सन्तानों के पालन-पोषणमें जिन क्लेशों को सहन करते हैं, उनका बदला सैंकड़ों वर्षोंमें भी चुकाना संभव नहीं है। अतः हमे माता पिता के साथ सदा प्रिय आचरण करना चाहिए।

 

एक बीमार बच्ची की सर्जरी होनी जरूरी थी लेकिन सर्जरी के बाद भी उसके बचने की संभावना कम थी। उसे लिटाया गया। फिर जब डॉक्टर एनेस्थीसिया देने लगे तो लड़की ने पूछा की, डाक्टर! आप क्या करने लगे है? उन्होंने कहा, तुम्हें नींदकी दवा देकर सुला रहे हैं।

 

भारत तथा विदेशों के विद्वानों ने भी महर्षि दयानंद सरस्वती के प्रति उद्गार प्रकट किये है। इनमें दादाभाई नौरोजी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, महात्मा गाँधी, श्रीमती एनी बीसेन्ट आदि अनेक प्रमुख नाम हैं। स्वाधीनता संग्राम के योद्धा के रूपमें पहला नाम महर्षि दयानन्द का ही आता है।

 

 

पहले तीन मन्त्रों द्वारा आचमन, अंगस्पर्श, मार्जन और प्राणायाम द्वारा शरीरकी नीरोगता तथा मानसिक स्थिरता होती है। अघमर्षण के तीन मन्त्र सृष्टिकी उत्पत्ति तथा प्रलय के वर्णन द्वारा साधक के हृदयको पापमुक्त होने को प्रेरित करते हैं। चौथे सोपानमें मनसापरिक्रमा के मन्त्रों द्वारा साधक सभी दिशाओं में प्रभु की उपस्थितिका ध्यान कर अपने द्वेष को प्रभुको अर्पित कर देता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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