वोल्गा से गंगा हिन्दी पुस्तक पीडीएफ | Volga Se Ganga Hindi Book PDF


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वोल्गा से गंगा हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Volga Se Ganga Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : वोल्गा से गंगा | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : राहुल सांकृत्यायन | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 15 MB है | इस पुस्तक में कुल 386 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "वोल्गा से गंगा" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Volga Se Ganga | This book is written by : Rahul Sankrityayan | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 15 MB approximately. This book has a total of 386 pages. Download link of the book "Volga Se Ganga" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
राहुल सांकृत्यायनसाहित्य15 MB386



पुस्तक से : 

सघन नीले नभ के नीचे पृथ्वी कर्पूर जैसे श्वेत हिम से आच्छादित है। चौबीस घंटो से हिमपात न होने की वजह से हिम अत्यंत कठोर हो गया है। यह हिमवसना धरती दिगन्त-व्याप्त नहीं है, बल्कि उत्तर से दक्षिण की ओर कुछ मील लम्बी रुपहली टेढ़ी-मेढ़ी रेखाकी भाँति स्थित है।

 

सचमुच ही ये छोटे-छोटे बच्चे हैं, इनमें सबसे बड़ा बच्चा आठ साल का है, और छोटा तो मात्र एक वर्ष का है। आधे दर्जन लड़के मात्र एक घर मे। यह घर नहीं यह पर्वत गुहा ही है, जिसका पिछला भाग अन्धकारमें कहाँ तक जाता हैं, इसे हम नहीं देख पा रहे हैं, और न ही देखने की कोशिश करनी चाहिए।

 

मानव आज जहाँ पर है, वहाँ प्रारम्भ मे ही नहीं पहुँच गया था, इसके लिये उसे बड़े संघर्ष करने पड़े है। इसका सरल चित्रण करने से प्रगति को समझने में आसानी होगी, इसी ख्याल ने मुझे "वोल्गा से गंगा" लिखने के लिये प्रेरित किया। मैंने यहाँ से हिन्दी-युरोपीय जाति को लिया है, जिससे पाठकों को सुविधा होगा।

 

 

उन्हे बातचीत करते छोड़ हम बाहर आ जाते हैं, बर्फ पर बहुत-से पैर एक ओर जा रहे हैं। चलो उन्हें पकड़े हुए जल्दी-जल्दी चले। अभी वह पद-पंक्कि तिरछी हो पारवाली पहाड़ी के जगल मे पहुंच गई | हम तेज़ीसे दौड़ते हुए बढ़ रहे है। हम कभी श्वेत हिमक्षेत्र में चलते हैं तो कभी जंगल से हो पहाड़ी को पारकर दूसरे हिम-क्षेत्र और दूसरे वनको लाँघते हुए आगे बढ़ते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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