यन्त्र शक्ति हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Yantra Shakti Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : यन्त्र शक्ति | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ रूद्रदेव त्रिपाठी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : रंजन पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 30 MB है | इस पुस्तक में कुल 166 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "यन्त्र शक्ति" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
Name of the book is : Yantra Shakti | This book is authored/edited by : Dr Rudradev Tripathi | This book is published by : Ranjan Publications, New Delhi | PDF file of this book is of size 30 MB approximately. This book has a total of 166 pages. Download link of the book "Yantra Shakti" has been given further on this page from where you can download it for free.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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डॉ रूद्रदेव त्रिपाठी | मंत्र-तन्त्र, ज्योतिष, धर्म | 30 MB | 166 |
पुस्तक से :
हमारी भारतभूमि का मानव समाज जिस प्रकार भाषा, भूषा और अन्यान्य विषयों में विविधता को बनाये हुए भी भारतीय संस्कृति की एकरूपता का पूर्ण उपासक बना हुआ है उसी प्रकार आस्तिक वर्ग भी भिन्न-भिन्न सम्प्रदायोंमें दीक्षित होते हुए भी मंत्र, तंत्र और यंत्रों में एक समान विश्वास रखता आया है।
आज इस ओर हमारा ध्यान नहीं है और यदि ध्यान देते हैं, तो व्यवस्थित पद्धतियोंका ज्ञान न होने से उसमें सफलता नहीं मिलती। कुछ लोग ऐसी पवित्र विद्याको व्यापार और आय का साधन बनाकर इसके महत्त्व को घटा देते हैं। विधिविधान से साधना न होने के कारण द्रव्य देकर प्राप्त किये गए यन्त्र उतना कार्य भी नहीं करते हैं। ऐसी ही दृष्टियों को सामने रखकर हमने 'यन्त्रशक्ति' की रचना की है।
यंत्र इनमें अति महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं । यन्त्रों की उपासना में मन्त्र और तंत्रों का भी समन्वय हो जाता है। यन्त्र विद्या के प्रति प्राचीन काल में पर्याप्त श्रद्धा थी, इसका विधिवत् प्रयोग होता था और उपासना द्वारा यन्त्रोंको सिद्ध करके बड़े से बड़े कठिन कार्य सरल बना लिए जाते थे ।
मूल हस्तलिखित पाण्डुलिपि से सर्वप्रथम सम्पादित एक ऐसा ग्रन्थ, जो आयु निर्णय सम्बन्धी सभी पहलुओं पर शास्त्रीय व आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रकाश डालता है जिसमें बादरायण, गर्ग, यवन, पराशर आदि महर्षियों एवं वराह, श्रीपति, सत्याचार्य, मणित्थ व श्रोधर आदि आचार्यों के वचनोंको आधार मानकर ग्रन्थकारने इसकी प्रामाणिकता में अपूर्व श्रीवृद्धि की है।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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