योग तांत्रिक साधना प्रसंग हिन्दी पुस्तक पीडीएफ | Yog Tantrik Sadhna Prasang Hindi Book PDF


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योग तांत्रिक साधना प्रसंग हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Yog Tantrik Sadhna Prasang Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : योग तांत्रिक साधना प्रसंग | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : अरुण कुमार शर्मा | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : आस्था प्रकाशन, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 274 MB है | इस पुस्तक में कुल 399 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "योग तांत्रिक साधना प्रसंग" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Yog Tantrik Sadhna Prasang | This book is written/edited by : Arun Kumar Sharma | This book is published by : Astha Prakashan, Varanasi | PDF file of this book is of size 274 MB approximately. This book has a total of 399 pages. Download link of the book "Yog Tantrik Sadhna Prasang" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
अरुण कुमार शर्मातंत्र - मंत्र274 MB399



पुस्तक से : 

इस संबंध में हम बस इतना ही कहेंगे कि जिसको भक्ति सरल और सुगम लगती हो और उसमें रस मिलता हो वह उसे निःसंकोच स्वीकार कर सकता है। किसी भी प्रकारसे कोई आपत्ति नहीं। इस प्रसंग में यह समझ लेना चाहिए कि यहां योगका अर्थ व्यापक है।

 

योग और तंत्र ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। योग के बिना तंत्र और तंत्र के बिना योग की साधना संभव नहीं। भारतीय संस्कृति में कुल सोलह प्रकार की उपासनाएं हैं लेकिन साधना दो ही प्रकार की हैं। पहली है योग साधना तथा दूसरी है तंत्र साधना। इन दोनों का ही स्रोत वेद है। वेद ज्ञान है साधना नहीं।

 

शरीर, प्राण और मन इन तीनों के अनुकूल न होने पर आगे के मार्ग का प्रशस्त होना कठिन है। विभिन्न प्रकार के आसनों द्वारा शरीरको अनुकूल बनाना ही अत्यन्त श्रम साध्य है। प्राणायाम तो और अधिक कठिन है ध्यान भी अपने आप में जटिल कार्य है। वृत्तियोंका अंत तो आज के युग में हमें असंभव दिखता हैं। 

 

 

हम भी नये नहीं हैं और हमारा जीवन भी नया नहीं है। कहा जाय तो इस संसारमें कोई चीज नया नहीं है, सभी पुराने हैं। जीवन एक ऐसी धारा है, जिसके न आदिका पता है और न ही अन्त का। हम कहां से चले हैं और कहां तक जायेंगे इसका भी कोई पता नहीं। भगवान बुद्ध के चरणोंमें बैठ कर उनकी वाणी भी सुनी है हमने और भगवान श्रीकृष्णको भी देखा। उनके कोमल रस भरे वचनों को भी सुना है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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