आग और धुआं - आचार्य चतुरसेन हिन्दी पुस्तक | Aag Aur Dhuaan - Acharya Chatursen Hindi Book PDF


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आग और धुआं हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Aag Aur Dhuaan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : आग और धुआं | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : आचार्य चतुरसेन | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : प्रभात प्रकाशन, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 11 MB है | इस पुस्तक में कुल 171 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "आग और धुआं" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Aag Aur Dhuaan | This book is written/edited by : Acharya Chatursen | This book is published by : Prabhat Prakashan, Delhi | PDF file of this book is of size 11 MB approximately. This book has a total of 171 pages. Download link of the book "Aag Aur Dhuaan" has been given further on this page from where you can download it for free.


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आचार्य चतुरसनउपन्यास11 MB171



पुस्तक से : 

अंग्रेज किले में घुसकर फाटक बन्द करके बैठे रहे। जिसको जिधर राह सूझी उधर भाग निकले। घाटों, जंगलों और नदियों के किनारोंमें दल के दल लोग कुहराम मचाते भागने लगे। सबसे खराब दुर्दशा उन अभागों की हुई थी, जिन्होंने काले चमड़े पर टोप पहनकर अपने धर्मको तिलांजलि दी थी।

 

वह तत्काल अमीचन्द के नौकर बरकन्दाजोंको इकट्ठा करके महल के फाटक पर रक्षा करने के लिए कमर कसकर तैयार हो गया। अंग्रेजों ने आकर सबसे पहले फाटक पर लड़ाई शुरू कर दी। दोनों पक्षों की लड़ाई से खूनकी नदी बह निकली। अन्त में धीरे धीरे करके अमीचन्द के सारे सिपाही घराशायी हो गए।

 

अंग्रेजों ने उसकी दीवारको फोड़कर कुछ तोपें इकट्ठा कर रखी थीं। उनकी योजना लाल बाजार के रास्ते नवाबी सेना के अग्रसर होते ही जेलखाने और पूर्व मोर्चों से आग बरसाकर सेनाको बरबाद कर देना था। वही नवाब की सेना अनजानों की तरह तोपों के सामने सीधी नहीं आई। उसने सड़कवाला रास्ता ही छोड़ दिया।

 

 

सेठों में जगतसेठ की प्रतिष्ठा जैसी थी, व्यापारियों में वैसी ही प्रतिष्ठा अमीचन्द की थी। वह भारतवर्ष के पश्चिमी प्रदेशका एक बनिया था। अंग्रेजों ने उसी की सहायता से बंगाल में वाणिज्य विस्तार किया था। उसीकी सहायता से अंग्रेज गाँव में रुपया बाँटकर कपास तथा रेशमी वस्त्रकी खरीदारी कर सके थे। उसकी सहायता न होती, तो अंग्रेज लोगों को अपरिचित देशमें अपनी शक्ति बढ़ाने कदापि न मिलता।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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