अर्थ संग्रह हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Arth Sangrah Hindi Book PDF

     

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अर्थ संग्रह हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Arth Sangrah Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : अर्थ संग्रह | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: डॉ राजेश्वर शास्त्री मुसलगाँवकर | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखम्भा संस्कृत संस्थान, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 138 MB है | इस पुस्तक में कुल 454 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "अर्थ संग्रह" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Arth Sangrah | Author/Editor of this book is : Dr Rajeshwar Shastri Musalgaonkar | This book is published by : Chaukhambha Sanskrit Sansthan, Varanasi | PDF file of this book is of size 138 MB approximately. This book has a total of 454 pages. Download link of the book "Arth Sangrah" has been given further on this page from where you can download it for free.


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डॉ राजेश्वर शास्त्री मुसलगाँवकर धर्म, दर्शन138 MB454



पुस्तक से : 

'अर्थसङ्ग्रह' मीमांसा का एक प्रकरण ग्रंथ हैं। विषय प्रतिपादन के क्रम में न्याय प्रकाश से इसका निकट का सम्बन्ध है। संक्षेप में अधिकतम विषयों का निरूपण होने से तथा प्रतिपाद्य विषय की सुबोधता एवं अभिव्यक्ति की स्पष्टता के कारण अध्ययन एवं अध्यापन के लिए प्रस्तुत ग्रंथका प्रचार अत्यधिक हुआ है।

 

'मीमांसा' शब्द की व्युत्पत्ति 'मान्' धातु से 'जिज्ञासा' के अर्थ में 'सन्' प्रत्यय करके की जाती है। यह पूजित विचार' या 'पूजित जिज्ञासा' के अर्थ में भी प्रसिद्ध है। सर्वप्रथम यह शब्द वैदिक कर्मकाण्डविषयक जिज्ञासा के लिये प्रयुक्त किया जाता था।

 

यह नितान्त सत्य है कि मीमांसक ईश्वरद्वेषी नहीं है। वस्तुतः नैयायिकों द्वारा पद पदार्थ के सम्बन्ध को ईश्वरेच्छा रूप सिद्धान्ततः स्वीकार कर लिए जाने पर मीमांसकों ने उनके उक्त सिद्धान्त का खण्डन किया है नैयायिकों का तात्पर्य यह है कि वेद शब्दरूप है अतः वह भी ईश्वरेच्छा सापेक्ष ही होगा, तब वेदनिरपेक्ष प्रमाण नहीं हो सकता।

 

 

भारतीय विचार चिन्तनमें मीमांसादर्शन का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। आधुनिक एवं प्राचीन विचारक इसे 'वाक्यशास्त्र' भी कहते हैं। मीमांसादर्शन का मुख्य प्रतिपाद्य विषय यज्ञ-यागादि होते हुए भी भारतीय दार्शनिक चिन्तन में मीमांसकों के विचार अत्यधिक महत्त्व का स्थान रखते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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