भारतीय इतिहास का विकृतीकरण हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Bharatiya Itihas ka Vikrutikaran Hindi Book PDF

   


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भारतीय इतिहास का विकृतीकरण हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bharatiya Itihas ka Vikrutikaran Hindi Book



इस ग्रन्थ का नाम है : भारतीय इतिहास का विकृतीकरण | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: रघुनन्दन प्रसाद शर्मा | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : हिन्दू राइटर्स फोरम, नई दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB है | इस पुस्तक में कुल 77 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "भारतीय इतिहास का विकृतीकरण" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Bharatiya Itihas ka Vikrutikaran | Author/Editor of this book is : Raghunandan Prasad Sharma | This book is published by : Hindu Writers Forum, New Delhi | PDF file of this book is of size 1 MB approximately. This book has a total of 77 pages. Download link of the book "Bharatiya Itihas ka Vikrutikaran" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
रघुनन्दन प्रसाद शर्माइतिहास, संस्कृति1 MB77



पुस्तक से : 

आज भारत स्वतंत्र है। यहाँ के नागरिक ही यहाँ के शासक हैं। अत यह अत्यन्त आवश्यक है कि देश के हर नागरिक के मन में भारतीयताकी शुद्ध भावना जागृत हो. उसने अपनी संस्कृति, अपने राष्ट्र और अपने प्राचीन साहित्यके प्रति सच्ची निष्ठा पैदा हो।

 

स्वाधीनता के पश्चात प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद जी के प्रयास से शिक्षा मंत्रालय द्वारा भारतीय इतिहासको सुधारने की दृष्टि से एक कमेटी बैठाई गई थी किन्तु कमेटी में सभी विद्वान मैकाले पद्धति से शिक्षित-प्रशिक्षित ही थे। अतः वे भारतीय दृष्टि से इस दिशा में विचार कर ही न पाए और एक सद्प्रयास व्यर्थ हो गया।

 

"भारत का आधुनिक इतिहास लेखन" एक प्रवंचना 500 पृष्ठ की पुस्तक है जो कि मुख्यतः शोधकर्ताओं और इतिहास विषय के ज्ञाताओं के लिए है। सामान्य पाठक की सुविधा की दृष्टि से अनेक स्थानों से अनेक साथियों का सुझाव आया कि इसे सक्षिप्त रूप में प्रकाशित कराया जाए। प्रस्तुत पुस्तक हिन्दू राइटर्स फोरम के अध्यक्ष, भारतीय संस्कृति के अनन्य प्रेमी डॉ. कृष्ण वल्लभ पालीवाल जी की प्रेरणा से तैयार की गई है।

 

 

पराधीनता व्यक्ति की हो या राष्ट्र की सदा ही दुःखदायी और कष्टकारी होती है। पराधीन व्यक्ति/राष्ट्र अपना स्वत्व और स्वाभिमान ही नहीं अपना गौरव और महत्त्व भी भूल जाता है या भूल जाने को बाध्य कर दिया जाता है। भारतीयों के साथ भी सुदीर्घ परतंत्रता काल में ऐसा ही हुआ है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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