एक लोटा पानी (गीता प्रेस) हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Ek Lota Pani (Gita Press) Hindi Book PDF



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एक लोटा पानी हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ek Lota Pani Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : एक लोटा पानी |इस पुस्तक में जीवन को ऊँचा उठाने वाली 24 रोचक कहानियों का संग्रह है | इस पुस्तक के लेखक/संपादक है: श्री पारसनाथ सरस्वती | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 62 MB है | इस पुस्तक में कुल 162 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "एक लोटा पानी" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Ek Lota Pani | This book contains a collection of 24 interesting stories that teach morality | Author/Editor of this book is : Shri Parasnath Saraswati | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 62 MB approximately. This book has a total of 162 pages. Download link of the book "Ek Lota Pani" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री पारसनाथ सरस्वतीकहानी, बाल-साहित्य, धर्म62 MB162



पुस्तक से : 

मायासे बचकर चलना ही जीवात्माका पुरुषार्थ है। त्रिगुणात्मक माया ही जीवात्माकी समझ की परीक्षाभूमि है। अगर त्रिगुण के त्रिशूलकी एक भी नोक छू ली तो फिर सफाया समझना। गुरु का काम है - ज्ञान देना, इसलिये मैं यही ज्ञान देता हूँ कि गुणातीत बनो।

 

सोने की खान देखते ही भगतजी की नीयत बदल गयी। आप कहने लगे – गुरुजी ने त्रिगुण से बचने का उपदेश दिया है। मगर उनके प्रवचन से परिवर्तन की गुंजाइश है। मान लो कि मुझे आज कञ्चन मिल गया है। यदि मैं इस कञ्चन द्वारा बुरे कर्म करूँ तो यह हानिकर प्रमाणित हो सकता है। उस अवस्था में कञ्चन त्याज्य ठहराया जा सकता है। पर इसी कञ्चन से अगर अच्छे काम करूँ तो यह धन कैसे जहर बन जायगा?

 

सूर्यसेन ने समझाया — 'अधिक न देखना' का अर्थ यह है कि हिंसा को अधिक दिनों तक अपने मन में नहीं रखना चाहिये । 'न थोड़ा देखना' का मतलब यह है कि अपने बन्धु या मित्र का जरा भी दोष देखकर उससे सहज ही सम्बन्ध मत तोड़ना। अब रहा - 'हिंसा को प्रतिहिंसा के द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता।'

 

 

सूर्यसेन को मुरली बजाने का शौक था। प्रातः चार बजे वह प्रतिदिन बड़े प्रेम से मुरली बजाया करता था। एक दिन उसकी मुरली की मधुर ध्वनि काशीनरेश के कानों में भी जा पहुँची। प्रातः राजा ने महावत से पूछा- 'तुम्हारे घर में मुरली कौन बजाता है?' महावत ने कहा- 'एक आवारा लड़केको मैंने नौकर रखा । हाथियों को पानी पिलाता है। वही मुरली बजाया करता है।'

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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