गणित की पहेलियाँ - गुणाकर मुले हिन्दी पुस्तक | Ganit Ki Paheliyan - Gunakar Muley Hindi Book PDF


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गणित की पहेलियाँ हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ganit Ki Paheliyan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : गणित की पहेलियाँ | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : गुणाकर मुले | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : राजकमल प्रकाशन, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 2 MB है | इस पुस्तक में कुल 36 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "गणित की पहेलियाँ" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Ganit Ki Paheliyan | This book is written/edited by : Gunakar Muley | This book is published by : Rajkamal Prakashan, Delhi | PDF file of this book is of size 2 MB approximately. This book has a total of 36 pages. Download link of the book "Ganit Ki Paheliyan" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गुणाकार मुलेगणित2 MB36



पुस्तक से : 

क्योंकि किसी भी गतिमान वस्तुको अपने अन्तिम लक्षित स्थान पर पहुँचने के पहले मार्ग के मध्य स्थान पर पहुंचना आवश्यक होगा किन्तु मध्य स्थान पर पहुँचने के पूर्व इसे चौथाई स्थान पर भी अवश्य ही पहुँचना होगा और विभाजनका यह क्रम इसी प्रकार अनन्त तक चलता रहेगा।

 

उस समय काशीमें एक विशाल मन्दिर हुआ करता था। ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्माजी ने जब इस संसार की रचना की तभी उन्होंने इस मन्दिरमें हीरे की बनी हुई तीन छड़े रखी। फिर इनमें से एक में छेदवाली सोनेकी ६४ तश्तरियाँ रखीं ब्रह्माजी ने वहाँ पर एक पुजारी को नियुक्त किया।

 

एक खरगोश और कछुए की दौड़ हो रही थी। शुरुआतमें कछुआ खरगोशसे कुछ आगे रहता है। उसके बाद दौड़ शुरू होती है। खरगोश कभी भी कछुए के आगे नहीं बढ़ सकता, क्योंकि खरगोशको सर्वप्रथम उस स्थान पर पहुँचना होगा जहाँ पर पहले कछुआ था। खरगोश जैसे ही उस स्थान तक पहुंचेगा, कछुआ थोड़ा और आगे बढ़ चुका होगा।

 

 

सामान्य लोग तो वैसे भी गणित को दुरुहतासे प्रातंकित है। आरंभ में ही इन पहेलियोंकी तार्किक गम्भीरता से पाठकगण हतोत्साहित न हो जाएँ। इन पहेलियोंको हम इसलिए यहां दे रहे हैं क्योंकि न केवल जनसाधारण लोगो के लिए, हल्की बड़े महान गणितज्ञों एवं दार्शनिकों के लिए भी ये पहेलियाँ समान रूप से पिछले कई हजारों वर्षोंसे सिरदर्द बनी हुई हैं। यहाँ हम इन्हें अपने मूल रूपमें प्रस्तुत करेंगे।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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