गृह्य सूत्र पुस्तक पीडीएफ | Grihya Sutra Sanskrit Book PDF


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गृह्य सूत्र संस्कृत पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Grihya Sutra Sanskrit Book



इस पुस्तक का नाम है : गृह्य सूत्र | इस पुस्तक के लेखक हैं : आश्वलायन| इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 65 MB है | इस पुस्तक में कुल 471 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "गृह्य सूत्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Grihya Sutra | This book is written by : Aashwalayan | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 65 MB approximately. This book has a total of 471 pages. Download link of the book "Grihya Sutra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
आश्वलायनधार्मिक65 MB471



पुस्तक से : 

पवित्रे अन्तयोरसंस्पृष्ठोपकनिष्ठिकाभ्यामुत्तानाभ्यां पाणिभ्या गृहीत्वा मागुत्पुनाति सकृन्मन्त्रेण द्विस्तूष्णीम्। मागिति पाठः कार्य:। माङिति पुँल्लिङ्गपाठे कर्तुः माङ्मुखत्वं स्यात्। तच्च परिभाषासिद्धम्। ननु कर्मणश्चापि माक्त्वं तत सिद्धम्। तत्तु शास्त्रान्तरदृष्टपुनराहारनिवृत्यर्थम्।

 

आचार्यस्योत्पवनं नित्यम्। पूर्ववदिसाकूतम्। सुक्खुवसंमार्जनमप्यन्यशास्त्रे दृष्टम्। तस्वापीच्छातः क्रिया। अनयोः संमार्ग उच्यते। दक्षिणेन हस्तेनौ गृहीत्वा सव्येन कांविदर्भानादाय जुहूं निधाय दक्षिणेन पाणिना स्रुवस्य दर्भाप्रैर्विलादा रम्य प्रागपवर्ग विः संमृज्याधस्ता दग्रेणैवाग्रमभ्यात्मं संमाष्टि।

 

आज्यमेव यत्र हविः स आज्यहोमः। अन्यथा ज्यग्रहणस्य वैयर्थ्यं स्यात्। सर्वत्र ह्याघारादयः सन्त्येव। आज्यहोमेषु परिस्तरणं कार्य वा न वेसर्थः। अयं परिस्तरण विकल्पो यत्राग्रहणमस्ति यथा आज्याहुतीर्जुहुयात् इति तत्रैव भवति। पुनरनादिष्टा ज्यहोमेषु यद्यनादिष्टहोमेष्वप्ययं विकल्प स्यात्तत्रा ज्यग्रहणमपार्थकं स्यात्।

 

 

अन्येच लोकिका दोषाः समुत्प द्यन्ते। तेषांग्रहणं किमर्थम्। विवाहस्यानन्तरत्वात्सर्वेषां प्राप्त्यर्थमिति चेत्। दर्शना त्सर्वेषां स्युः। यदयं विवाहे चतुर्थीमियाह। तेषां संबधिन्यो न्तर्वर्तिन्य एता आहुतयो भवन्ति तुतेभ्यः पूर्वे भवन्तीत्येवमर्थ तेपांग्रहणम्। तर्हि पुरस्ताद् ब्रहणमपार्थकम्। प्रयोजन सुपरिष्टाद्वक्ष्यामः। संख्यावचनं किमर्थम्।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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