हिन्दी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि हिन्दी पुस्तक | Hindi Kavya Ki Tantrik Prishthbhumi Hindi Book PDF


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हिन्दी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Hindi Kavya Ki Tantrik Prishthbhumi Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : हिन्दी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ. विश्वम्भर नाथ उपाध्याय | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : साहित्य भवन प्राइवेट लिमिटेड, प्रयागराज | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 143 MB है | इस पुस्तक में कुल 348 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "हिन्दी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Hindi Kavya Ki Tantrik Prishthbhumi | This book is written/edited by : Dr Vishvambhar Nath Upadhyay | This book is published by : Sahitya Bhavan Private Limited, Prayagraj | PDF file of this book is of size 143 MB approximately. This book has a total of 348 pages. Download link of the book "Hindi Kavya Ki Tantrik Prishthbhumi" has been given further on this page from where you can download it for free.


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डॉ. विश्वम्भर नाथ उपाध्यायतंत्र मंत्र143 MB348



पुस्तक से : 

भारतीय शक्ति-पूजा का अद्भुत सादृश्य मिलता है किन्तु प्रागैतिहासिक युग में शाक्तपूजा सभी जगह मिलती है। देवीको उपज का देवता माना जाता था और इसीलिए शाक्त-सम्प्रदाय की तरह इतर सम्प्रदाय में भोग के गुप्तसाधन प्रचलित रही। जादूका सम्बंध धर्म के रूप में सर्वत्र मिलता है।

 

जो आलोचना है, वह किसी नवीन जीवन दर्शनकी प्रतिष्ठा करने के लिए नहीं है बल्कि दुर्बलताओं को दूर करने के लिए है। मध्यकालीन काव्य में व्यक्त चिन्तनधारा और साधनाका निर्माण जिन सूत्रों से हुआ है, उनकी पहचान के लिए इस पुस्तक में विस्तार से वर्णन हुआ है। तंतुओं की पहचान के बिना वस्त्रकी पहचान नहीं हो सकती।

 

यदि आपको कबीर को समझने के लिए धर्म-दर्शन पढ़ना पड़ता है तब काव्यका अनुशीलक यदि कबीर के काव्य को ध्यान में रखते हुए उन धार्मिक और दार्शनिक तत्वों की छानबीन करे तो इसमें गलत क्या है? हिन्दी में असम्बद्ध ज्ञानका अभाव नहीं है किन्तु इस चक्कर में इतना उथलापन आया है कि पोथों में भी कोई नई सूचना नहीं मिलती।

 

 

मध्यकालीन काव्य प्रवाहमें अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए हमें प्रेरित करती हैं अतः यह भी आवश्यक है कि शाक्तमत, शेवमत, पांचरात्रमत और तांत्रिक बौद्धमत के आदिम रूप को भी हम ध्यानमें रखें उसके बाद ही हम इस धारा का ऐतिहासिक योगदान निश्चित कर सकते हैं। यह धारा उन सम्प्रदायों के रूप में संगठित होने के पूर्व किस रूपमें प्रचलित थी, इस तथ्य पर प्रकाश डालना आवश्यक हो जाता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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