हिन्दी की आदर्श कहानियां - प्रेमचन्द हिन्दी पुस्तक | Hindi Ki Adarsh Kahaniyan - Premchand Hindi Book PDF


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हिन्दी की आदर्श कहानियां हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Hindi Ki Adarsh Kahaniyan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : हिन्दी की आदर्श कहानियां | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : मुंशी प्रेमचन्द | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : सरस्वती प्रेस, बनारस | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 7 MB है | इस पुस्तक में कुल 152 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "हिन्दी की आदर्श कहानियां" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Hindi Ki Adarsh Kahaniyan | This book is written/edited by : Munshi Premchand | This book is published by : Saraswati Press, Banaras | PDF file of this book is of size 7 MB approximately. This book has a total of 152 pages. Download link of the book "Hindi Ki Adarsh Kahaniyan" has been given further on this page from where you can download it for free.


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मुंशी प्रेमचन्दकहानी7 MB152



पुस्तक से : 

वह झलक स्वाभाविक चरित्र का अंग होती है। कहानी के पात्रों के चरित्र के विकास के लिए उसमें पूर्ण अवसर नहीं है। किंतु उसके विकासकी स्वाभाविक गति का परिचय किसी प्रकार पाठकों को मिलना चाहिए, अन्यथा वह पात्र असम्भव होगा और उसका चरित्र भी अस्वाभाविक होगा।

 

यदि पाठक पूरी कहानी पढ़े बिना नहीं उठता है और उसकी बैठक मन उबाने वाली नही होती है तो घंटो तककी कहानी भी अनुचित नही मानी जायगी। परन्तु यह समय भी अलग अलग देश के अनुसार होगा। पश्चिमी देशोंमें जहाँ समय बहुत महँगी चीज है, वहाँ पन्द्रह मिनट से अधिक समयकी कहानियाँ लम्बी समझी जाती हैं।

 

यही दृष्टिकोण उस कहानीका उद्देश्य निर्धारित करता है। कहानी केवल घटनाओं के क्रम, पात्रों के आचरण और कथोपकथन के बहाने अपना उद्देश्य प्रकट करता है। कभी-कभी वह अन्तमें स्पष्ट रूप से कह देता है। सष्ट कहने से अधिक अच्छा होता है, न कहकर केवल संकेत मात्र देना जिसमें केवल वही परिणाम निकले।

 

 

कहानी का अध्ययन करते समय और उसकी आलोचनात्मक परीक्षा करते समय हमें सबसे पहले इस बात का ध्यान रखना होता है कि कहानीका आरम्भ कैसा हुआ है। क्या शुरुआत में ही हमारा ध्यान कहानी के मुख्यकी ओर आकर्षित होने लगता है। इस युग में समय बहुत मूल्यवान है। अवकाश का अभाव हर जगह है। इसीलिए पाठक सीधे कहानी पर आना चाहता है। हिन्दी की कहानियों में इसपर जोर नहीं दिया जाता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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