ईशादि विंशोत्तरशतोपनिषदः पुस्तक पीडीएफ | Ishadi Vimshottarashatopanishad Book PDF


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ईशादि विंशोत्तरशतोपनिषदः संस्कृत पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ishadi Vimshottarashatopanishad Sanskrit Book



इस पुस्तक का नाम है : ईशादि विंशोत्तरशतोपनिषदः | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : नारायण राम आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : निर्णय सागर मुद्रणालय, मुंबई | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 55 MB है | इस पुस्तक में कुल 679 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "ईशादि विंशोत्तरशतोपनिषदः" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Ishadi Vimshottarashatopanishad | This book is written/edited by : Narayan Ram Acharya | This book is published by : Nirnay Sagar Mudranalaya, Mumbai | PDF file of this book is of size 55 MB approximately. This book has a total of 679 pages. Download link of the book "Ishadi Vimshottarashatopanishad" has been given further on this page from where you can download it for free.


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नारायण राम आचार्यधर्म55 MB679



पुस्तक से : 

सर्वसारं निरालम्बं रहस्यं वज्रसूचिकम्। तेजोनादृध्यान विद्यायोगतत्त्वात्मबोधकम्। पर शिखी सीता चूडा निर्वाणमण्डलम्। दक्षिणा शरभं स्कन्दं महानारायणाह्वयम्। रहस्यं रामतपनं वासुदेवं च मुद्गलम्। सावित्र्यात्मा पाशुपतं परब्रह्मा वधूतकम्।

 

निश्रेणिस्थानीयोऽयं प्रबन्ध निःशङ्कं निर्विवादं चेति सुवचम्। नहि स्वाज्ञान कल्पिताहंममेत्या दिभेदकलुषीकृतभूमभावस्य निरस्त समस्तौपाधिकस्यो पनिषन्निकरो त्यैकत्व विज्ञानेनोन्मथितः कृताकृतादि द्वैतप्रपञ्चो प्रत्यवतिष्ठते। मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः' इत्याद्यसकृत्तत्रतत्रो।

 

तत्प्रतिपादका वेदाश्च सन्ति स्वतःप्रमाणभूताः। तत्र वेद वाक्यानां 'उदिते जुहोति' अनुदिते जुहोति इत्यादि प्रायः परस्पर विरुद्धार्थाभिधायकत्वेन व्यवस्थित वेदवाक्यार्थान वधारणात्तव्यव स्थायै वेदवाक्यार्थविचारात्मिकां सुगृहीतनामधेयो सूत्रयांबभूव। तया च साक्षाद्विध्येक वाक्यतया सर्वेषां वेदवचसां कर्मपरत्वं प्रत्यपीपदत्।

 

 

अन्यदेवाहुः संभवादन्यदाहुरसंभ वात्। इति शुशुभ धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे। संभूतिं च विनाश च यस्तद्वेदोभय सह। विनाशेन तीर्त्वा संभूत्याऽमृतमश्नुते। हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्। तत्त्वं सत्यधर्माय दृष्टये। पूषन्नेकर्षे यम सूर्य प्राजापत्य व्यूह रश्मीन्समूह। तेजो यत्ते रूपं तत्ते पश्यामि योसावसौ पुरुषः सोऽहमस्मि।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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