ज्योतिष रत्नाकर हिन्दी पुस्तक | Jyotish Ratnakar Hindi Book PDF


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ज्योतिष रत्नाकर हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Jyotish Ratnakar Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : ज्योतिष रत्नाकर | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : देवकीनंदन सिंह | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 49 MB है | इस पुस्तक में कुल 1119 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "ज्योतिष रत्नाकर" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Jyotish Ratnakar | This book is written/edited by : Devakinandan Singh | This book is published by : Motilal Banarasidas, Varanasi | PDF file of this book is of size 49 MB approximately. This book has a total of 1119 pages. Download link of the book "Jyotish Ratnakar" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
देवकीनंदन सिंहज्योतिष49 MB1119



पुस्तक से : 

फलित ज्योतिष में विश्वास न रखने वाले विद्वान् सिद्धान्त ज्योतिषकी अपेक्षा फलित ज्योतिष को अर्वाचीन मानते है। किन्तु रामायण एवं महाभारत के परिशीलन से हमें मालूम होता है कि उस सुदूर काल में भी फलित ज्योतिष का बहुत प्रचार था। महाभारतमें समस्त नक्षत्रों की सूची दी गई है।

 

अरबी के साहित्य से ज्ञात होता है कि कई भारतीय ज्योतिविद् बगदाद की राजसभा में आये थे और उन्होंने अरब देशमें ज्योतिष का प्रचार प्रसार किया था। अन्य देशों में भी ज्योतिषशास्त्रियों का आवागमन होता था। इनके कारण यदि कुछ विदेशी शब्द हमारी भाषामें जुड़ गये तो इससे हम पर विदेशी प्रभाव का होना सिद्ध नहीं होता है।

 

जिस भाग में ग्रह, नक्षत्र आदि की गति एवं संस्थान आदि अन्य प्रकृतिका निर्धारण किया जाता है उसे सिद्धान्त ज्योतिष कहते हैं। जिस भाग के द्वारा ग्रह, नक्षत्र आदि की गतिको देखकर प्राणियो के शुभ और अशुभ का निर्णय किया जाता है उसे फलित ज्योतिष कहते हैं। इस ग्रन्थ के दो भाग हैं जो कि सुविधा के लिये एक ही जिल्दमें रखे गये है।

 

 

इससे भी अधिक विपरीत बात तब होती है जब एक ही मास में चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण दोनो का योग होता है। वह भी त्रयोदशी के दिन महाभारत के इन तथा अन्य प्रसंगोंसे ज्ञात होता है कि अनेकों प्रकार के उत्थान ग्रहों की चाल पर अवलम्बित माने जाते थे। लोगोंका ऐसा विश्वास था कि व्यक्ति के सुख-दुख और जन्म-मरण आदि भी ग्रह-नक्षत्रों से सम्बद्ध है। समुद्र में ज्वार-भाटा का कारण भी चन्द्रमाका प्रभाव है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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