काली स्वरूप तत्व पुस्तक पीडीएफ | Kali Swaroop Tattva Sanskrit Book PDF


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काली स्वरूप तत्व संस्कृत पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kali Swaroop Tattva Sanskrit Book



इस पुस्तक का नाम है : काली स्वरूप तत्व | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : श्री श्यामानंद नाथ | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : कल्याण मंदिर, प्रयागराज | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 24 MB है | इस पुस्तक में कुल 126 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "काली स्वरूप तत्व" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kali Swaroop Tattva | This book is written/edited by : Shri Shyamananda Nath | This book is published by : Kalyan Mandir, Prayagraj | PDF file of this book is of size 24 MB approximately. This book has a total of 126 pages. Download link of the book "Kali Swaroop Tattva" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री श्यामानंद नाथभक्ति, धर्म24 MB126



पुस्तक से : 

देव्युवाच वरं वरय राजेन्द्र ददामि तेवरं शिवम्। यदिच्छसि प्रदास्यामि सत्यं न संशयः। विश्वामित्र उवाच आराधिता मया ब्रह्माद्या देवता गणाः। विप्रत्वं केन में देवि न त्वं प्रदेहिमें। श्रत्वा वाक्यं नृपस्याशु सा देवी स्वामिनो मुखम्। निरीक्षे द्धितभावेन संकेतेन उवाच तम् महादेवोपि ज्ञात्वा प्रीतिभावेन शङ्कर:।

 

कर्णावतंसतानीत शवयुग्म भयाकाम्। घोरष्टंट्रां करालास्यां पीनोन्नतपयोधरीम। शवानां करसंघातैः काश हसन्मुखीम्। सक्कद्वयगलदूरक्तधारा विस्फुरितान नाम। घोररावां महारौद्रीं श्मशानालयवासिनीम्। वाला कमन्डलाकार लोचनत्रितयान्विताम्। दन्तुरां दक्षिणव्यापि मुक्तालम्बिक चोच्चयाम।

 

एक हाथी वहाँ आया, सबके सब एक साथ दौड़े। किसी ने उसका पांव छू पाया तो कोई कान। किसी ने दुम पकड़ा और किसी ने सूंड। जिसने पांव छूआ, वो कहने लगा कि हाथी उखली होता है और जिसने कान छुआ था, वह कहने लगा कि हाथी उखली जैसा नहीं होता है, सूप जैसा होता है। इसी तरह दुम के छूने वाले ने उसे रस्सा जैसा बतलाया।

 

 

ईश्वर उवाच एकाक्षरी महाविद्या कालिकायाः सुदुर्लभा। जप महाबाहो ततः प्राप्स्यसि विप्रताम्। एवमुक्खा महादेवोप्य जगाम सः। विश्वामित्रोऽपि विधिना आराध्यतो जगन्मयीम। मंत्रसिद्धि चावाप क्रोधेन शशाप ताम। अनाराध्या भवेत त्वं आगम्य तु ततः शिवम्। निर्भर्त्स्य बहुधा तन्तु इदमाह महेश्वर ईश्वर किमर्थ राप्तवान् विद्यांयत्नेन पार्थिव रैफारूढककाररेण सिद्धिमाप्स्यसि नान्यथा।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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