कालिदास सूक्ति मंजूषा संस्कृत पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kalidas Sukti Manjusha Sanskrit Book
इस पुस्तक का नाम है : कालिदास सूक्ति मंजूषा | इस पुस्तक के लेखक हैं : कालिदास | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 27 MB है | इस पुस्तक में कुल 480 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कालिदास सूक्ति मंजूषा" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
Name of the book is : Kalidas Sukti Manjusha | This book is written by : Kalidas | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 27 MB approximately. This book has a total of 480 pages. Download link of the book "Kalidas Sukti Manjusha" has been given further on this page from where you can download it for free.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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कालिदास | धार्मिक | 27 MB | 480 |
पुस्तक से :
उद्धेरिव रत्नानि तेजांसीव विवस्वतः। स्तुतिभ्यो व्यतिरिष्यन्ते दूराणि चरितानि ते। अनवाप्त मवापतव्यं नते किंचन विद्यते। लोकानुग्रह एवैको हेतुम्ते जन्मकर्मणोः। महिमानं यदुत्कीर्त् तव संह्रियते वचः। श्रमेण तदशक्त्या वा न गुणानामियत्तया।
अमेयो मितलोकस्त्वमनर्थी प्रार्थनावहः। अजितो जिष्णुरत्यन्तमव्यक्तो व्यक्तकारणम्। हृदयस्थमना सन्नमकामं त्वां तपश्चिनम्।दयालुमन घस्पृष्टं पुराणमजरं विदुः। सर्वज्ञस्त्वमविज्ञातः सर्वयोनिस्त्वनात्मभू। सर्वप्रभुरनी शस्त्वमेवं सर्वरूपभाक्।
स्वकालपरिमाणेन व्यस्तरात्रिंदि॒वस्य ते। याँतु स्वप्नावबोधौ तौ भूताना प्रयोदयो। जगद्योनिरयो नित्त्वं जगदन्तो निरन्तकः। जगदादिरनादिस्त्वं जगदीशो निरीश्वर। आत्मानमात्मना वेत्सि सृजस्यात्मानमात्मना। आत्मना कृतिना च त्वमात्मन्येव प्रलीयसे।
यश्चाप्सरो विभ्रममण्डना संपादयित्रीं शिखरे बिभर्ति। बलाहकच्छेद विभक्तरागामकाल संध्यामि धातुमत्ताम। आमेखलं संचरतां घनानां छायामधः सानुगतां निषेव्य। उद्वेजिता वृष्टिभिराश्रयन्ते शृङ्गाणि यस्यातपवन्ति सिद्धाः। पदं तुषारस्रुतिधौतरक्तं यस्मिन्नदृष्ट्वापि हतद्विनाम्। विदन्ति नखरन्थमुक्तैर्मुक्ता फलै केसरिणां किराता।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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