कल्याण गंगा अंक (गीता प्रेस) ग्रन्थ | Kalyan Ganga Anka (Gita Press) Book PDF

 


Kalyan-Ganga-Anka-Gita-Press-Book-PDF


कल्याण गंगा अंक हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kalyan Ganga Anka Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कल्याण गंगा अंक | इस पुस्तक के लेखक/संपादक है: अज्ञात | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 322 MB है | इस पुस्तक में कुल 508 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कल्याण गंगा अंक" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kalyan Ganga Anka | Author/Editor of this book is : Unknown | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 322 MB approximately. This book has a total of 508 pages. Download link of the book "Kalyan Ganga Anka" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के प्रकाशकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेस, गोरखपुर भक्ति, धर्म322 MB508



पुस्तक से : 

हे गंगे! हे यमुने! हे सरस्वति! हे शुतुद्रि! हे परुष्णि! असिक्निीसहित हे मरुद्वृधे ! वितस्ता तथा सुषोमानदीसे समृद्ध हे आर्जीकीये! आप सभी सर्वदा स्तवनीय हैं। हे नदीस्वरूपा देवियो! मेरे द्वारा की जानेवाली स्तुतियोंका कृपया आप श्रवण करें।  [ऋग्वेद]

 

हिममण्डित पर्वत-शिखरों से द्रवित होती हुई अविरल शीतल जलधाराएँ सागर में विलीन हो रही हैं। वे सतत गतिशील तथा शैत्यवाहिनी जलधाराएँ उपासकों के अन्तस्ताप का परिशमन करनेवाली ओषधियाँ प्रदान करें। [ अथर्ववेद ]

 

विष्णु-पदकंज-मकरंद इव अम्बुवर वहसि, दुख दहसि, अघवृन्द विद्राविनी ॥ मिलित जलपात्र-अज युक्त-हरिचरणरज, विरज-वर-वारि त्रिपुरारि शिर-धामिनी । 

 

गंगाजी के दर्शन से [गंगाजी में भक्ति रखनेवाले पुरुषको] जितनी प्रसन्नता होती है, उतनी वन के दर्शनों से, अभीष्ट विषय से, पुत्रोंसे तथा धन की प्राप्ति से भी नहीं होती जैसे पूर्ण चन्द्रमा का दर्शन करके मनुष्यांकी दृष्टि प्रसन्न हो जाती है, वैसे ही त्रिपथगा गंगा का दर्शन करके मनुष्यों के नेत्र आनन्द से खिल उठते हैं। [महाभारत]

 

 

पुराणों में गंगा के आविर्भाव को विभिन्न रूपों में जैसे विभिन्न कथाएँ आयी है, वैसे ही उनके आविर्भाव की स्नान एवं गंगापूजनका विशेष महत्व बताया गया है। तिथि भी अनेक रूपों में मान्य है। मुख्य रूप से ज्येष्ठमास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 'गंगादशहरा' कहलाती है। यह धरतीपर गंगावतरणकी मुख्य तिथि मानी जाती है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

"कल्याण गंगा अंक - गीता प्रेस, गोरखपुर" हिन्दी पुस्तक को सीधे एक क्लिक में मुफ्त डाउनलोड करने के लिए नीचे दिए गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें |

To download "Kalyan Ganga Anka - Gita Press, Gorakhpur" Hindi book in just single click for free, simply click on the download button provided below.


Download PDF (322 MB)


If you like the book, we recommend you to buy it from the original publisher/owner.



यदि इस पुस्तक के विवरण में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से संबंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उस सम्बन्ध में हमें यहाँ सूचित कर सकते हैं