करवट - अमृतलाल नागर हिन्दी पुस्तक | Karwat - Amritlal Nagar Hindi Book PDF


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करवट हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Karwat Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : करवट | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : अमृतलाल नागर | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : राजपाल एण्ड सन्ज, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 11 MB है | इस पुस्तक में कुल 360 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "करवट" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Karwat | This book is written/edited by : Amritlal Nagar | This book is published by : Rajpal And Sons, Delhi | PDF file of this book is of size 11 MB approximately. This book has a total of 360 pages. Download link of the book "Karwat" has been given further on this page from where you can download it for free.


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अमृतलाल नागरउपन्यास11 MB360



पुस्तक से : 

चिरैया झील अब दूर नही थी, भोजन के समय तक पहुंच गये थे। रंग-बिरंगी, तरह-तरह की आवाजों वाली चिड़ियोंसे वह इलाका चहक रहा था। इश्क की रंगीन ख्यालियो में चहकते हुए यह दो पंछी अभी कुछ और ठहरते, मगर ढलते कार्तिक के सूरजकी तेजी बर्दाश्त न हुई, दोनो वापस चले आये।

 

हमारा नाम लोगे तो तुम्हारे लिए रहनेका बन्दोबस्त भी हो जाएगा। उनसे हमारी जयशंकरजी कहना। वो तीन वर्ष बाद घर आया था, घरवालों ने जाने न दिया। मुसद्दीमल से तो नही पर उसकी मां से बोले "इसको अच्छी तरहसे खिला-पीला देना भाई। चूकि इसने अपनी मर्जी से घर छोडा हैगा तो हम तो अपने मुंहसे नहीं कहेंगे, बाकी ये अगर रहना चाहे तो घर में रहे।

 

वो ऐसे खिलखिला कर हंसी कि छुरियों से ज्यादा बड़ी घाव कर गई। फिर वो दरवाजे बंद कर बाहर चली गई। दूसरा दिन अपने घरवालों और मुशी हिम्मत बहादुर आदि के यहां मिलने-जुलने में बिताया। घर लौट रहे थे कि तभी पीछेसे किसी ने दौड़कर पीछा किया। बंसी ने मुड़कर देखा तो पंडित तरलोचन नाथ अपनी पंखिया लिये खड़े हैं।

 

 

इस हद तक बंसी ने अपने आचार विचारको बेझिझक त्यागा। मुंशी हिम्मत बहादुर के यहां पढ़ते हुए उसने कभी उनके यहां पानी तक भी नही पिया था। इतने सारे दोस्त हैं, लेकिन धरमकी यारी उनसे नही की। ठाकुर रामजियावन सिंह के घर खानपान के संबंधमें उसका कोई प्रतिबंध नही था। लेकिन शिवरतन सिंह से याराना हो जाने की बदौलत वह गोश्त और प्याज खाने लगा जो लखनऊ की खत्री बिरादरी में वर्जित था।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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