कश्यप संहिता पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kasyapa Samhita Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : कश्यप संहिता | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: पंडित हेमराज शर्मा | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : जय कृष्णदास हरिदास गुप्त, चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस, बनारस | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 132 MB है | इस पुस्तक में कुल 624 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कश्यप संहिता" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
Name of the book is : Kasyapa Samhita | Author/Editor of this book is : Pandit Hemraja Sharma | This book is published by : Jai Krishnadas Haridas Gupt, Chaukhamba Sanskrit Series Office, Banaras | PDF file of this book is of size 132 MB approximately. This book has a total of 624 pages. Download link of the book "Kasyapa Samhita" has been given further on this page from where you can download it for free.
पुस्तक के संपादक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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पंडित हेमराज शर्मा | आयुर्वेद, धर्म | 132 MB | 624 |
पुस्तक से :
इस ग्रन्थ में बालकों के विषय में अनेक ऐसी बातें दी हुई हैं जो अन्य प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रन्थ में साधारणतया देखने को नहीं मिलती हैं। उदाहरण के लिये बालकों के लेहन, सन्निपात, फक्करोग आदि का इसमें विशेष वर्णन किया गया है। बालकों के दन्तोत्पत्ति का इतना विशद वर्णन अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है।
इस ग्रन्थ का मुख्य विपय कौमारभृत्य है अर्थात् इसमें बालकों के रोग, उनका पालन पोषण, स्तन्य शोधन एवं धात्रीचिकित्सा आदि का विशद वर्णन मिलता है। कौमारभृत्य अष्टाङ्ग आयुर्वेद का एक अवि भाज्य अङ्ग है। इसके अभाव में अष्टाङ्ग आयुर्वेद पूर्ण नहीं कहा जा सकता।
विषम ज्वर के वेगों के विषय में यहां एक बिलकुल नवीन शंका उपस्थित करके उसका युक्ति पूर्वक बड़ा सुन्दर उत्तर दिया गया है। विषमज्वर के अन्येशुष्क, तृतीयक तथा चतुर्थक के समान अन्य भेद क्यों नहीं होते ? अर्थात् जिस प्रकार विषमञ्बर प्रति दिन, तीसरे दिन एवं चौथे दिन होता है उसी प्रकार पांचवें तथा छठें दिन भी इसके वेग क्यों नहीं होते?
कालक्रम से हमारे अनेक प्राचीन आयुर्वेदिक तथा अन्य ग्रन्थ भी विलुप्त हो चुके हैं । इन विलुप्त प्रन्थों में से जो अनेक ग्रन्थ समय-समय पर उपलब्ध हुए हैं उन्हीं में से काश्यप संहिता भी एक है। यद्यपि यह ग्रन्थ अभी तक पूर्णरूप से नहीं मिला है तथापि जर्जरित एवं खण्डित रूप में उपलब्ध होने पर भी यह हमारे महान् आयुर्वेद कोप की अमूल्य निधि समझी जानी चाहिये तथा समय प्रवाह से भविष्य में इस ग्रन्थ के अवशिष्ट अंशों की उपलब्धि की आशा भी रखनी चाहिये।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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