लघु पाराशरी हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Laghu Parashari Hindi Book PDF

 


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लघु पाराशरी हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Laghu Parashari Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : लघु पाराशरी | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: पंडित श्री सीताराम झा | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : मास्टर खेलाड़ीलाल संकटा प्रसाद संस्कृत पुस्तकालय, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 53 MB है | इस पुस्तक में कुल 58 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "लघु पाराशरी" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Laghu Parashari | Author/Editor of this book is : Pandit Shri Sitaram Jha | This book is published by : Master Kheladilal Sankata Prasad Sanskrit Pustakalaya, Varanasi | PDF file of this book is of size 53 MB approximately. This book has a total of 58 pages. Download link of the book "Laghu Parashari" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
पंडित श्री सीताराम झाज्योतिष, धर्म53 MB58



पुस्तक से : 

महर्षि पाराशर प्रणीत होराशास्त्र की उपयोगिता के विषय में कुछ भी लिखना दिन में दीपक प्रज्वलित करना है; क्योंकि इस कलिकाल में प्राणियों के कल्याण का मार्ग बताने वाले भगवान् पराशर ही हैं। सब निबन्धकारों ने 'कलो पाराशरी स्मृतिः'। कलियुग में पराशर मतानुसार ही चलने का आदेश दिया है.

 

महर्षि पराशर प्रणीत होराशास्त्र को अति विस्तृत समझ कर ज्योतिथियों के उपकारार्थ उसमें से सारार्थ लेकर उनके शिष्यों में से एक सुविज्ञ दैवज्ञ ने ४० श्लोक में 'उड़दाय प्रदीप नामक ग्रन्थ लिखा। जिससे सर्व साधारण जनों का असाधारण उपकार हुआ। आकाशस्थ राशि और ग्रह के बिम्बों में स्वाभाविक शुभत्व और अशुभत्व है।

 

'उडुदायप्रदीप' को पढ़ कर जातक के शुभाशुभ फल समझने में लोग क्षम तो हुए अवश्य किन्तु वास्तव में पराशर होरा का पठन-पाठन बन्द हो गया; फिर वह ग्रन्थ भी दुष्प्राप्य सा हो गया। इधर जब से किसी ने 'बृहत्पाराशर होरा सारांश' नाम की एक संग्रहीत पुस्तक प्रकाशित किया तब से 'उडुदान प्रदीप' का नाम लोगों ने 'लघुपाराशरी' रख दिया है।

 

 

जिस ग्रह की महादशा में प्रत्येक ग्रहों की अन्तर्दशा जानना हो उस ग्रह की दशावर्ण संख्या को अलग-अलग प्रत्येक ग्रह की दशा संख्या से गुना कर गुणनफल में १२० के भाग देने से लब्धि वर्षादि तत्तद्ग्रह की अन्तर्दशा का मान होता है। इस प्रकार अन्तर्दशा पर से प्रत्यन्तदंशा तथा प्रत्यन्तर पर से विदशा, विदशा पर से उपदशा का आनयन होता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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