ललिता सहस्रनाम हिन्दी पुस्तक | Lalita Sahasranama Hindi Book PDF


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ललिता सहस्रनाम हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Lalita Sahasranama Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : ललिता सहस्रनाम | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित हरिदत्त शास्त्री | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 93 MB है | इस पुस्तक में कुल 306 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "ललिता सहस्रनाम" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Lalita Sahasranama | This book is written/edited by : Pandit Hari Dutta Shastri | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 93 MB approximately. This book has a total of 306 pages. Download link of the book "Lalita Sahasranama" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
पंडित हरिदत्त शास्त्रीभक्ति, धर्म93 MB306



पुस्तक से : 

स्वामी ब्रह्मानन्द तीर्थ जो काश्मीर महाराज के गुरु थे भुवनेश्वरीमें पुरश्चरण के लिए पधारे। माता ने उन्हें अपने घर पर आमन्त्रित किया। उनके आदेश से १५ वर्षकी अवस्था में भुवनेश्वरी उनके साथ जानेका पहली बार अवसर मिला। वहीं पर उनसे तांत्रिक दीक्षा मिली। स्वामीजी ने भुवनेश्वरी के मन्दिरमें पुरश्चरण कराये।

 

महाराज नगेन्द्र शाह के साथ आपको अजमेर जाना पड़ा और आपने इनको कौटिल्यका अर्थ शास्त्र पढ़ाया। अजमेर में आपको कुछ बौद्ध ग्रन्थ के अध्ययन करनेका भी मौका मिला। कीर्तिशाह के दिवंगत होनेपर गरीब बालकों की शिक्षा के लिये जो योजना चल रही थी उसमें राज्य कर्मचारियों के द्वारा शिथिलताकी जाने लगी।

 

इसके अनन्तर काशी स्थान तथा लाहौर प्रभृति पांचाल देशों में जानेका अवसर मिला। आप फिर प्रयाग में रहने लगे उस समय पंडित मदनमोहन मालवीय तथा आदित्य राम भट्टाचार्य के सम्पर्क में आकर कभी-कभी आपका प्रवचन होता था। जब टिहरी के राजा कीर्त्तिशाह अपनी ससुरालमें आये, उनके निमन्त्रण पर वे राजासे मिलने गये।

 

 

इनकी अश्रुधारा पाँव तक बहतीं थी। इनके स्वर में भी प्रणवकी ध्वनि सुनाई पड़ती थी। तीर्थरामजी का सन्यास हुआ और फिर यहीं से इनको नाम स्वामी रामतीर्थ के नाम से जाने जाना लगा। फिर ये हिमालयमें विचरे और कई सिंह आदि वन्य पशु इन्हें रास्ते में मिलते थे, लेकिन उनके ओंकार की ध्वनि सुनते ही सभी शान्त हो जाते थे। स्वामी रामतीर्थ हिमालय में विचरे और टिहरीमें आकर विलंगना नदी में इन्होंने जल समाधि ले ली।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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