ममता - जयशंकर प्रसाद हिन्दी पुस्तक | Mamta - Jaishankar Prasad Hindi Book PDF


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ममता हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mamta Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : ममता | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : जयशंकर प्रसाद | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : आमोद पुस्तक सदन, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB है | इस पुस्तक में कुल 17 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "ममता" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Mamta | This book is written/edited by : Jaishankar Prasad | This book is published by : Aamod Pustak Sadan, Delhi | PDF file of this book is of size 1 MB approximately. This book has a total of 17 pages. Download link of the book "Mamta" has been given further on this page from where you can download it for free.


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जयशंकर प्रसादकहानी1 MB17



पुस्तक से : 

ममता ने जल पीना चाहा, एक स्त्री ने उसे जल पिलाया। तभी एक अश्वारोही उसी उसके झोपड़ी के पास दिखाई पड़ा। वह अपनी धुनमें बोलने लगा, मिरजा ने जो चित्र बनवाकर दिया है, वह तो इसी जगह का होना चाहिए। अब तो वो बुढ़िया भी मर गई होगी, किससे पूछें कि एक दिन हुमायूँ किस कुटिया के नीचे बैठे थे।

 

ममता छिपने के लिए अधिक चेष्ट हुई। वह मृग यदाव में चली गई। वो दिनभर उसमेंसे नही निकली। संध्या में जब उन लोगों ने प्रस्थान किया, तो ममता ने सुना, पथिक घोड़े पर सवार होते हुए बोला- मिरजा, उस स्त्री को मैं कुछ दे नही पता। तुम उसका घर बनवा देना, क्योंकि मैंने विपत्ति में यहाँ विश्राम पाया था। इस स्थान को कभी भूलना मत।

 

राजा, रानी और कोष सब शेरशाह के हाथ पड़े, निकल गई सारी ममता। डोलीमें भरे हुए पठान सैनिक पूरे दुर्ग में फैल गए, लेकिन ममता कही न मिली। काशी के उत्तर धर्मचक्र विहार, गुप्त सम्राटों की कीर्तिका खंडहर था। भग्न चूड़ा, तृण- गुल्मों से यके हुए प्राचीर, ईंटों की येर में बिखरी भारतीय शिल्पकी विभूति अपने को शीतल कर रही थी।

 

 

मुझे तो अपना कर्त्तव्य निभाना ही पड़ेगा। वो बाहर आई और मुगलसे बोली, अंदर आ जाओ थके हुए भयभीत पथिक। तुम चाहे कोई भी रहो, मैं तुम्हें आश्रय अवश्य दूंगी। मैं एक ब्राह्मण कुमारी हूँ। चाहे सभी अपना धर्म छोड़ दें, तो क्या मैं भी अपना धर्म छोड़ दूँ ? मुगल ने चन्द्रमा के मंद प्रकाशमें वह महिमामय मुखमंडल देखा, उसने मन ही मन उसे नमस्कार किया। फिर ममता पासकी दीवारों में चली गई।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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