नारद भक्ति दर्शन हिन्दी पुस्तक | Narad Bhakti Darshan Hindi Book PDF


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नारद भक्ति दर्शन हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Narad Bhakti Darshan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : नारद भक्ति दर्शन | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : सत्साहित्य प्रकाशन ट्रस्ट, मुंबई | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 20 MB है | इस पुस्तक में कुल 554 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "नारद भक्ति दर्शन" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Narad Bhakti Darshan | This book is written/edited by : Swami Akhandananda Saraswati | This book is published by : Satsahitya Prakashan Trust, Mumbai | PDF file of this book is of size 20 MB approximately. This book has a total of 554 pages. Download link of the book "Narad Bhakti Darshan" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीभक्ति, धर्म20 MB554



पुस्तक से : 

शास्त्रों में ऐसे साधनोंका निरूपण है। जो अधिकारी विशेष के चित्तमें आते हैं। संसारमें अनंत दुख और सर्वत्र संघर्प है। संसारके सभी प्राणी संघर्ष और अशान्ति से व्याकुल हैं। धर्मानुष्ठानमें नियम, संयम, सामग्री आदिके एकत्र करने और कर्म का क्लेश है। योग में आसन, प्राणायामादि का क्लेश है।

 

उनका पालन पोषण करना अतिआवश्यक था। किसीको पुत्रीका विवाह करना था। किसीने नई नई शादी की थी। किसीका प्रारम्भ कार्य अभी अधूरा था। इस प्रकार कारण तो बहुत थे किन्तु सबको संसारमें और समय रहना आवश्यक जान पड़ता था। कोई तत्काल भगवद्धाम जानेको तैयार ही नही था।

 

उसमें से एक पाठ गीताप्रेस में छपा है। दूसरा पाठ हिन्दी के l विद्वान् कवि भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्रजी का है। भारतेन्दुजीने तदीयसर्वस्व नामसे इस नारदीय भक्तिदर्शन की टीका लिखी है। जैसे वेदोंमें अनुवाक होते हैं उसी प्रकार 'भक्ति दर्शन' की उस टीकामें भी 'अनुवाक-भेद' माने गये हैं और सभी सूत्रके शुरू में प्रणव लगाया गया है ।

 

 

जब भगवान् के लिए व्याकुलता होगी तब चित्त द्रवित होगा। भगवान के रूपका, गुणों का और उनकी लीला का स्मरण करो। स्मरण करो कि सर्वेश्वर प्रभु शरशय्या पर लेटे भीष्म पितामह का ध्यान कर रहे हैं। ध्यान करो कि श्रीद्वारकानाथ मैले चीथड़े लपेटे, कंकालप्राय सुदामाके पैर हाथों में लेके उन पर अनुवर्षा कर रहे हैं और नन्दबाबाकी गोद में सिर रखकर वे फूट-फूटकर रो रहे हैं। यह स्मरण करोगे तो हृदय द्रवित होगा।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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