नरसिम्हा प्रयोग पारिजात हिन्दी पुस्तक | Narasimha Prayog Parijat Hindi Book PDF


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नरसिम्हा प्रयोग पारिजात हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Narasimha Prayog Parijat Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : नरसिम्हा प्रयोग पारिजात | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : वासुदेव लक्ष्मण शास्त्री | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : सागर प्रेस | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 1.9 GB है | इस पुस्तक में कुल 972 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "नरसिम्हा प्रयोग पारिजात" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Narasimha Prayog Parijat | This book is written/edited by : Vasudev Lakshman Shastri | This book is published by : Sagar Press | PDF file of this book is of size 1.9 GB approximately. This book has a total of 972 pages. Download link of the book "Narasimha Prayog Parijat" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
वासुदेव लक्ष्मण शास्त्रीभक्ति, धर्म1.9 GB972



पुस्तक से : 

अर्चिता ब्राह्मणाः सम्यग्गन्धमाल्यैः सदक्षिणैः। तिष्ठेयुः प्राङ्मुखा वक्तारो दर्भपाणयः। तिष्ठेद्वाचयिता तेषां दक्षिणस्या मुदङ्मुखः। बिभ्रत्कुम्मपां पूर्ण पिहिताननमर्चितम्। तिष्ठन्त्युदङ्मुखाः सम्यक्सं स्कार्यास्तत्रतत्र तु। मनइत्यादिकं मन्त्रमेकाग्रतिरादिशेत्।

 

अतः द्विजातीनां संस्कृतिर्नियतोच्यते। संस्काररहिता ये तु तेषां जन्म निरर्थकम् इति। नियता नित्या। निरर्थकलं ब्राह्मण्यानभिव्यक्तेः। 'चित्रकर्म यथानेकै रङ्गैरुन्मील्यते शनैः। ब्राह्मण्यमपि तद्वत्स्यात्संस्कारै र्विधिपूर्वकैः। स्खेस्खे यथा प्रोक्तास्तथा संस्कृतयो खिलाः। कर्तव्या भूतिकामेन नान्यथा सिद्धिमृच्छति।

 

ब्राह्मण संस्कृत ऋषीणां समानतां सायुज्यं गच्छति । दैवेनोत्तरेण संस्कृतो देवानां समानतां सायुज्यं गच्छतीति। प्रागुक्ताना संस्काराणां नैमित्तिक वार्षिकमासिक नित्यभेदेन चातुर्विध्य माहाश्वलायनाचार्यः नैमित्तिकाः षोडशोक्ता समुद्राहावसानकाः। तथैवाग्रयणाद्याश्च संस्कारा वार्षिका मताः।

 

 

अस्मिन्निबन्धेग्नि मुखाद्यारम्भकालीन संकल्प कथनावसरे शारीरक भाष्यानुसारिण स्तस्योल्लेखनात् पर्वनिर्णयमनुसृत्य प्रथमतो हेमाद्रिमतेनोल्लिख्य विद्यारण्यकृतः पर्वनिर्णय स्त्विति तयोर्निर्णयो पादानाच्छ्रीमद्विद्यारण्य स्वामिसमयाव्यवहितोत्तरकालीनो ग्रन्थकार इति निश्चीयते। श्रीमन्नृसिंह भगवदाराधनस्मरण संनमनदर्शनेन तदेकान्तनिष्ठो।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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