नाट्य शास्त्रम् - भरत मुनि हिन्दी पुस्तक | Natya Shastra - Bharat Muni Hindi Book PDF


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नाट्य शास्त्रम् हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Natya Shastra Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : नाट्य शास्त्रम् | इस पुस्तक के मूल लेखक है : भरत मुनि | इस पुस्तक के संपादक हैं : आचार्य श्री मधुसूदन शास्त्री | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 238 MB है | इस पुस्तक में कुल 1016 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "नाट्य शास्त्रम्" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Natya Shastra | This book is originally written by : Bharat Muni | This book is composed by : Acharya Shri Madhusudan Shastri | This book is published by : Banaras Hindu University, Varanasi | PDF file of this book is of size 238 MB approximately. This book has a total of 1016 pages. Download link of the book "Natya Shastra" has been given further on this page from where you can download it for free.


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श्री मधुसूदन शास्त्रीसंस्कृत238 MB1016



पुस्तक से : 

लोकत्रयी का निर्माण करनेवाला यह वेदत्रयी काव्य जब प्राणिमात्रके उपयोगके लिए होता हुआ भी दुरूह होने के कारण प्राणियोंमें बोध के अधिकारी मानव मात्र के बोधकी वस्तु न हो पाई तब ब्रह्माजी की इच्छा से वाल्मीकि ऋषि से मानव मात्र का उपयोगी काव्य रामायण समुद्भूत हुआ।

 

प्रथम वैषम्या वस्था में सामान्य स्पन्द होता है स्पन्दकी अनुभूति ही शब्द है, उसे सुना जाय या नहीं सुना जाय। इसीका नाम स्पन्द से क्रियाका होना है, नादकी अभिव्यक्ति है। यह शब्द योगियोंको ही समाधि अवस्था में सुनाई पड़ता है। उससे क्रियारूप नाद अर्थात् ध्वनि उत्पन्न हुई। उसको ऋषियोंने सुना।

 

इस विवरण से सिद्ध है कि भाव या विचार कोई भी हो, सब शब्दसे ही उत्पन्न होते हैं। शब्द के बिना इनका कोई औचित्य नहीं हैं। शब्द में बड़ी सामर्थ्य छुपी होती है। आकाश में पुष्प एवं बाँझ को लड़का, न कभी हुआ न कभी होगा और न अभी भी है तथापि खपुष्प वन्ध्यापुत्र शब्दोंसे अर्थ की प्रतीति होती है।

 

 

साहित्यशास्त्र के उपयोगी विषयोके अतिरिक्त शास्त्रान्तर संकथाओंको भी पढ़ते थे और उनको मूर्तरूप देनेका आशीर्वाद देते थे। सन् १९४० की बात है कि अंग्रेजी के कुछ छात्र उनसे नाट्यशास्त्रको पढ़ने आये। उनको नाटकीय विषयपर एक निबन्ध लिखना था। मुझे गुरुवरने आदेश दिया कि इस कार्यको सम्पन्न कराओ। इसीलिए मुझे पूरी तैयारी करनी पड़ी।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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