रावण भाष्य हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Ravan Bhashya Hindi Book PDF

    


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रावण भाष्य हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ravan Bhashya Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : रावण भाष्य | इस पुस्तक के संपादक/अनुवादक है: डॉ सुधीर कुमार गुप्त | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : भारती मंदिर अनुसन्धान शाला, जयपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 6 MB है | इस पुस्तक में कुल 179 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "रावण भाष्य" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Ravan Bhashya | Editor/Translator of this book is : Dr Sudhir Kumar Gupt | This book is published by : Bharti Mandir Anusandhan Shala, Jaipur | PDF file of this book is of size 6 MB approximately. This book has a total of 179 pages. Download link of the book "Ravan Bhashya" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ सुधीरकुमार गुप्तधर्म6 MB179



पुस्तक से : 

इस संस्करण में भूमिका में रावण की माध्यशैली का प्राचीन और अर्वाचीन अनेकों सम्बद्ध भाष्यकारों की शैली से साम्य-वैषम्य प्रतिपादक तुलनात्मक संक्षिप्त अध्ययन भी प्रस्तुत किया गया है। मूल में पहले ऋग्वेदका मन्त्र, फिर उसका संकेत, सूर्यपण्डित की टीका का गीता का स्थल-संकेत और पृष्ठ दिए गए हैं।

 

प्रारम्भ में विचार था कि इस ग्रन्थ का माध्यम संस्कृत रक्खा जाए। परन्तु समय की आवश्यकता को अनुभव कर मूल संकलन के छपने के बाद माध्यम हिन्दी कर दिया गया। अतः मूल में टिप्पणियां आादि संस्कृत माध्यम में हैं। दो परिशिष्टों में भी संस्कृत का प्रयोग हो गया है।

 

नामसाम्यके कारण लोक में सामान्य धारणा वेदभाष्य कार रावण का लंका के राजा और रामायण के प्रतिनायक रावण से तादात्म्य करती है। इस धारणा को तो बिना किसी समीक्षा के तुरन्त ही त्यागा जा सकता है। आगे के विवरण भी इसी निष्कर्ष की ओर इंगित करते हैं।

 

 

सायण ने अपने भाष्य में स्कन्द से भी अक्षरशः भाष्य लिया है। अतः सायण को ही रावण से प्रभावित और उपकृत मानना समीचीन होगा। सायण १४वीं शती ईसा में रक्खे जाते हैं। श्रात्मानन्द भगवद्दत के मत में, सायण के कुछ पहले हुए थे। अतः रावण को भी सायण से पूर्व और आत्मानन्द के आसपास रक्खा जा सकता है। अत्र कण्वसंहिताभाष्यकारस्तु तत्सवितुरिति विश्वा मित्रः सावित्री गायत्री तदिति षष्ठ्या विपरिणाम्यते।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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