संगीत विशारद हिन्दी पुस्तक | Sangeet Visharad Hindi Book PDF


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संगीत विशारद हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sangeet Visharad Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : संगीत विशारद | इस पुस्तक के लेखक हैं : वसन्त | इस पुस्तक के संपादक हैं : लक्ष्मी नारायण गर्ग | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : संगीत कार्यालय, हाथरस | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 9 MB है | इस पुस्तक में कुल 224 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "संगीत विशारद" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Sangeet Visharad | This book is written by : Vasant | This book is Composed by : Lakshmi Narayan Garg | This book is published by : Sangeet Karyalay, Hathras | PDF file of this book is of size 9 MB approximately. This book has a total of 224 pages. Download link of the book "Sangeet Visharad" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
लक्ष्मी नारायण गर्गसंगीत,साहित्य9 MB224



पुस्तक से : 

वे कला के शाश्वत स्वरूप का निर्माण करने में पूरी तरह सफल होंगे। वास्तवमें गोष्ठियाँ संगीतज्ञो के लिये एक प्रकार से संजीवनी शक्ति है। विश्व के अनेको संगीतकारों ने सिर्फ गोष्ठियोंमें शामिल होने के बल पर ही संगीत के क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त की है। इन गोष्ठियोंमें आपको स्पष्ट हृदय एवं खुली हुई आँखों से जाना चाहिये।

 

जिसमें कोई स्थायित्व नहीं होता, जिसमें चौंधियाने वाली चमक तो अवश्य होती है लेकिन आत्माको आलोकित करने वाला तेज नहीं होती है। संगीतकारों की यह स्थिति ज्ञान के अभावमें हो गई है। हमारे संगीतज्ञ वास्तविक ज्ञान के अभाव में इधर-उधर भटक गये है। इन भटके हुए संगीतकारों का रुझान पश्चिमी संगीतकी ओर हो गया है।

 

सहूलियत के लिये आपको स्वर उसी ओर मोड़ना पड़ेगा, जैसा स्वर को शिल्पक्षता आपको विवश करे। यह थ्योरी वही है जो आपको निर्देशकी जा चुकी है। स्वर विज्ञान की इस व्यापक थ्योरी से गाए हुए गीत पर गायकको अधिक सावधानी बरतनी होगी। जब आप इसके अभ्यस्त हो जायेंगे तब आपके लिए यही कार्य सरल हो जायेगा।

 

 

संगीत को किस प्रकार गुलदस्ते के समान काट छांटकर दुरुस्त किया जाये। कैसे एक रूपमें अनेक रूपों का समन्वय किया जाये कि जिसमे उसकी मौलिकता नष्ट न हो, कैसे विभिन्न तथ्योंका एकीकरण करके उनमें अनुरूपता लाई जाए। उसके अनेक रूपोंको एक सूत्र में पिरोया जाये, किस प्रकार से प्राचीन पद्धतियों को आधुनिक सांचेमें ढालकर उनका जीवन बढ़ाया जाय। कैसे एक राग से अनेक राग निकालें जाये, ऐसे अनेक समस्या है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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