संस्कृत भाषा विज्ञान हिन्दी पुस्तक पीडीऍफ़ | Sanskrit Bhasha Vigyan Hindi Book PDF

    


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संस्कृत भाषा विज्ञान हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sanskrit Bhasha Vigyan Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : संस्कृत भाषा विज्ञान | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: प्रो. शिवबालक द्विवेदी एवं अवधेश कुमार चतुर्वेदी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : ग्रन्थम, रामबाग, कानपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 145 MB है | इस पुस्तक में कुल 306 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "संस्कृत भाषा विज्ञान" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Sanskrit Bhasha Vigyan | Author/Editor of this book is : Shivbalak Dwivedi and Awdhesh Kumar Chaturvedi | This book is published by : Grantham, Rambag, Kanpur | PDF file of this book is of size 145 MB approximately. This book has a total of 306 pages. Download link of the book "Sanskrit Bhasha Vigyan" has been given further on this page from where you can download it for free.


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शिवबालक द्विवेदी संस्कृत, साहित्य145 MB306



पुस्तक से : 

भाषा का मानव जीवन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। आज के इस वैज्ञानिक युग में तो भाषा का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। भाषा के बिना मानव-व्यवहार ही अपूर्ण है। अतः यह स्वाभाविक ही है कि भाषातत्त्व का साङ्गोपाङ्ग अध्ययन हो। भारत में प्राचीनकाल से ही भाषातत्त्व का अध्ययन होता चला आ रहा है।

 

विषय के गम्भीर एवं दुरुह होने के कारण विद्यार्थियों को कठिनायी अनुभव होती है। अतएव इसी को दृष्टि में रखकर यह पुस्तक प्रस्तुत की गयी है। विद्यार्थियों की कठिनायी को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक में प्रत्येक विषय को यथासम्भव सरल एवं बोधगम्य शैली में उपस्थित करने का प्रयास किया गया है।

 

वर्तमान काल में भाषा का व्यापक रूप से वैज्ञानिक विवेचन हुआ है। अतः यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि भाषा का विस्तृत एवं वैज्ञानिक अध्ययन होने पर इसका नामकरण क्या किया जाय? साधारण रूप से देखा जाय तो भाषा के विस्तृत एवं वैज्ञानिक अध्ययन को अनेक नामों से व्यवहृत किया गया है.

 

 

भाषाविज्ञान और व्याकरण-भाषाविज्ञान और व्याकरण दोनों ही भाषा के स्वरूप का विवेचन प्रस्तुत करते हैं। भाषाविज्ञान एवं व्याकरण दोनों में पर्याप्त साम्य तथा अन्तर भी है। भाषा-विज्ञान के प्रारम्भिक समय में यूरोप में इसका नामकरण 'तुलनात्मक व्याकरण' ही किया गया था। व्याकरण और भाषाविज्ञान का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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