संस्कृत व्याकरण की उपक्रमणिका - ईश्वरचंद्र विद्यासागर हिन्दी पुस्तक | Sanskrit Vyakaran Ki Upkramanika - Ishwar Chandra Vidyasagar Hindi Book PDF


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संस्कृत व्याकरण की उपक्रमणिका हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sanskrit Vyakaran Ki Upkramanika Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : संस्कृत व्याकरण की उपक्रमणिका | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : नंद किशोर एण्ड ब्रदर्स | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 378 MB है | इस पुस्तक में कुल 243 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "संस्कृत व्याकरण की उपक्रमणिका" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Sanskrit Vyakaran Ki Upkramanika | This book is written/edited by : Pandit Ishwar Chandra Vidyasagar | This book is published by : Nand Kishore & Brothers | PDF file of this book is of size 378 MB approximately. This book has a total of 243 pages. Download link of the book "Sanskrit Vyakaran Ki Upkramanika" has been given further on this page from where you can download it for free.


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पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागरभाषा,संस्कृत378 MB243



पुस्तक से : 

यदि दीर्घ के ऊकार से परे उ से भिन्न कोई स्वर वर्ण हो तो दीर्घ ऊकार के स्थान में व् हो जाता है और व् पूर्ववर्ण के साथ मिल जाता है और आगेका स्वर व् के साथ लग जाता है। यदि ऋकार के परे ऋकार से भिन्न कोई स्वर वर्ण रहे तो ऋकार के स्थानमें र कार हो जाता है।

 

समास में अ और आ के बाद ओष्ठ और ओतू शब्दों का ओ हो तो दोनों मिल कर ओ अथवा औ दोनों हो जाते हैं। यदि धातुका ए वा ओ परे रहे तो उपसर्ग के अ और आ का लोप हो जाता है। यदि आकार के बाद ओ अथवा औ रहे तो दोनों मिल कर औ हो जाते हैं और ओ कार पूर्व वर्णके साथ मिल जाता है।

 

पद के अन्त में स्थित ए और ओ के परे अकार से अलग कोई स्वरवर्ण रहे तो ए के स्थान में विकल्पसे अ और अय् होता है और ओ के स्थान में विकल्प से अ और अव होता है। पदान्त में स्थित ऐ और औ के परे स्वरवर्ण रहनेसे ऐ के स्थानमें विकल्प से आ और आय तथा औ के स्थानमें विकल्प से भा और आव होता है।

 

 

दो वर्ण परस्पर निकट होने से मिल जाते हैं और इस मेल को ही सन्धि कहा जाता हैं। सन्धि तीन प्रकार के होते है। ये तीन स्वरसन्धि, व्यञ्जनसन्धि और विसर्ग सन्धि है। स्वरवर्णकी स्वरवर्ण के साथ जो सन्धि होती है उसे स्वरसन्धि कहते हैं। व्यञ्जनवर्ण के साथ स्वरवर्ण या व्यञ्जन वर्णकी सन्धि होती है तो उसे व्यञ्जनसन्धि कहते हैं। विसर्ग के साथ व्यञ्जनवर्ण की जो सन्धि होती है उसे विसर्गसन्धि कहते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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