श्री दक्षिणा मूर्ति संहिता पुस्तक पीडीएफ | Shri Dakshina Murti Samhita Book PDF


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श्री दक्षिणा मूर्ति संहिता संस्कृत पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Dakshina Murti Samhita Sanskrit Book



इस पुस्तक का नाम है : श्री दक्षिणा मूर्ति संहिता | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित नारायण शास्त्री | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : संस्कृत कॉलेज सरस्वती भवन, बनारस | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 89 MB है | इस पुस्तक में कुल 228 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्री दक्षिणा मूर्ति संहिता" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shri Dakshina Murti Samhita | This book is written/edited by : Pandit Narayan Shastri | This book is published by : Sanskrit College Saraswati Bhavan, Banaras | PDF file of this book is of size 89 MB approximately. This book has a total of 228 pages. Download link of the book "Shri Dakshina Murti Samhita" has been given further on this page from where you can download it for free.


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पंडित नारायण शास्त्रीभक्ति, धर्म89 MB228



पुस्तक से : 

वरदाभयशोभाढ्यां चतुर्बाहुं सुलोचनाम्। आवाहनादिमुद्राश्च क्रमेणैव प्रदर्शयेत्। ऊर्ध्वाञ्जलिमधः कुर्य्यादियमावाहनी भवेत्। इयं विपरीता स्यात्तदा स्थापनी भवेत्। उर्ध्वाङ्गुष्ठौ मुष्टियुगं तयं सन्निधापनी।

 

शक्तिशक्तिमतोर विनाभावेनात्म शक्त्युपासका नामात्मलाभः सुशक एव। आत्मलाभात्परं किमपि लब्धव्यं नावशि ध्यते। तथा चोक्तं बाहुज कुलदावानलैः परमशिवान्तेसिभिरारा: धितश्रीचरणैः श्रीपरशुराम भट्टारकश्रीपादैः स्वीये कल्पसूत्रे आत्म लाभान्न विद्यते इति।

 

चतुर्भुजां स्फुरद्रत्ननूपुरां मुकुटोज्लाम्।ग्रैवेयांगदहाराढ्यां कङ्कतीरत्नकुण्डलाम्। पद्मानसमासीनां दूतीभिमंडि सदा। शुक्लांगरागवसनां महादिव्यांगनानताम्। एवं ध्यात्वार्चयेदेवीं पूर्वयन्त्रे पूर्ववत्। आदावंगानि सम्पूज्य पूर्ववत्परमेश्वरी। भारतीं पार्वतीं चान्द्रीं शचीं दिक्षु प्रपूजयेत्।

 

 

यस्य विज्ञानमात्रेण पुनर्जन्म न विद्यते। श्रीविद्या च परंज्योतिः परनिष्कलदेवता। अजपा मातृका चैव पञ्च कोशाः प्रकीर्त्तिताः। प्रणवं पूर्वमुच्चार्य हंसपदं लिखेत्। प्रणवाञ्चित्कला ज्ञेया मायया व्यातिरूपिणी। हंसपदेन देवेशि साक्षादात्म स्वरूपिणी। तत्रत्यविन्दुत्रितयात् सृष्टिस्थितिल यात्मिका। प्रसृते विन्दुनाद्येन वामेयं ब्रह्मरूपिणी।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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