श्री गुह्यकाल्या सुधा धारास्तव हिन्दी पुस्तक | Shri Guhyakalya Sudha Dharastava Hindi Book PDF


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श्री गुह्यकाल्या सुधा धारास्तव हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Guhyakalya Sudha Dharastava Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्री गुह्यकाल्या सुधा धारास्तव | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : श्री राममूर्ति शास्त्री | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री लक्ष्मी नारायण सेठ | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 5 MB है | इस पुस्तक में कुल 20 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्री गुह्यकाल्या सुधा धारास्तव" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shri Guhyakalya Sudha Dharastava | This book is written/edited by : Shri Ram Murti Shastri | This book is published by : Shri Lakshmi Narayan Seth | PDF file of this book is of size 5 MB approximately. This book has a total of 20 pages. Download link of the book "Shri Guhyakalya Sudha Dharastava" has been given further on this page from where you can download it for free.


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श्री राममूर्ति शास्त्रीभक्ति, धर्म5 MB20



पुस्तक से : 

कहाँ तो योगासन लगाकर योगमुद्रा धारण करके आपको प्राप्त करनेका कठिन प्रयास और कहाँ उस कालानल के सम्मुख सियारका बच्चा। उसी प्रकार हे माता ! हमारे जैसे लोग आपकी लीलाको कैसे समझ सकते हैं। आप तो विशुद्धा, चिन्मयी, अपने ही प्रकाशसे प्रकाशित, आनन्दरूपा और संसार में व्याप्त हैं।

 

चाहे कोई मेरी प्रशंसा करे या निन्दा, मेरी जातिवाले भी मुझे छोड़ना चाहँ तो भले छोड़ दे और यमके दूत भी चाहे मुझे नरक क्यों न ले जा पटके पर मेरी तो एक मात्र आप ही हैं, आप ही हैं। जो भक्त भक्तिभावसे इस महाकालरुद्रके बनाए हुए स्तोत्रका सदा पाठ करता रहेगा, उसपर न कोई आपत्ति आएगी, न शोक होगा।

 

शिवाओं के साथ चिल्लाती हुई, हाथमें कपाल लिए हुई, देवताओं के शत्रुओंको जीतती हुई, दुष्टों का दमन करती हुई, चलती और हँसती हुई भी आप एक मात्र परब्रह्म स्वरूपा ही हैं। जैसे प्रकाशमें चमकनेवाले सूर्य की प्रतिच्छाया से इस एक विश्व के ही अनेक रूप दिखाई देने लगते हैं तथा जल में सूर्यके भी अनेक रूप दिखाई देने लगते हैं।

 

 

आप ही जलमें शीतलता, अग्निमें दाहकता चन्द्रमा निर्मलता और सूर्य में ताप रूपसे हैं संसार में जिस किसीकी जो भी शक्ति है वह सब आप ही हैं क्योंकि आप ही परब्रह्म स्वरूपा हैं। महेश्वर शिवने जो प्रचंड विष पीया था और फिर जब शिवजी ने समस्त जगत् का संहार कर डालते हैं वह सब वे अपनी शक्तिसे नहीं वरन् आपके शक्ति से कर पाते हैं क्योंकि परब्रह्म स्वरूपा कोई हैं तो आप ही हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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