वैदिक सूक्त संग्रह - गीता प्रेस ग्रन्थ पीडीऍफ़ | Vaidik Sukta Sangrah - Gita Press Book PDF

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वैदिक सूक्त संग्रह हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vaidik Sukta Sangrah Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : वैदिक सूक्त संग्रह | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: राधेश्याम खेमका | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 93 MB है | इस पुस्तक में कुल 260 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "वैदिक सूक्त संग्रह" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Vaidik Sukta Sangrah | Author/Editor of this book is : Radheshyam Khemka | This book is published by : Gita Press, Gorakhpur | PDF file of this book is of size 93 MB approximately. This book has a total of 260 pages. Download link of the book "Vaidik Sukta Sangrah" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
राधेश्याम खेमकाधर्म, भक्ति93 MB260



पुस्तक से : 

आज मनुष्यकी अल्पआयु, व्याकरणकी ओर विमुखता तथा वर्तमान जीवन की व्यस्तताओं के बीच उनका अध्ययन तथा मनन करना अत्यन्त दुष्कर होता जा रहा है, अतः वेदोंमें यत्र-तत्र जो सूक्तरूपी अनेक मुक्ता-मणियाँ बिखरी पड़ी हैं, उन्हीं में से कुछ को एक सूत्र में पिरोकर वेदप्रेमी पाठकोंके लाभार्थ प्रस्तुत किया गया है, जिसमें व्यक्ति की अभीष्ट सिद्धिके अमोघ उपादान अन्तर्निहित हैं।

 

'सूक्त' शब्द 'सु' उपसर्गपूर्वक 'वच्' धातुसे 'क्त' प्रत्यय करनेपर व्याकृत होता है। 'सूक्त' शब्द का अर्थ हुआ— 'अच्छी रीति से कहा हुआ'। वैदिक मन्त्रोंके पूर्व निश्चित विशिष्ट मन्त्र समूह ही सूक्त कहे जाते हैं, जो वेदमन्त्रसमूह एकदैवत्य और एकार्थ प्रतिपादक हो, उसे सूक्त कहा जाता है।

 

भारतीय संस्कृति में यह धारणा निश्चित है कि विश्व-ब्रह्माण्डमें एक ही सत्ता विराजमान है, जिसका नाम-रूप कुछ भी नहीं है। इस सूक्त में इसी सत्य की अभिव्यक्ति है। इसके अतिरिक्त प्रारम्भ में स्वस्तिवाचन तथा अन्त में शान्त्यध्याय भी दिया गया है।

 

 

इन सूक्तों के जप एवं पाठकी अत्यधिक महिमा बतायी गयी है। इनके जप-पाठ से सभी प्रकारके आध्यात्मिक, आधिदैविक एवं आधिभौतिक क्लेशोंसे मुक्ति मिलती है। व्यक्ति परम पवित्र हो जाता है और अन्तःकरण की शुद्धि होकर पूर्वजन्मकी स्मृतिको प्राप्त करता हुआ वह जो भी चाहता है, उसे वह मनोऽभिलषित अनायासही प्राप्त हो जाता है.

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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