योग आसन एवं साधना हिन्दी पुस्तक | Yogasan Evam Sadhana Hindi Book PDF


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योग आसन एवं साधना हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Yogasan Evam Sadhana Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : योग आसन एवं साधना | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ. सत्यपाल | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : पुस्तक महल, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 2 MB है | इस पुस्तक में कुल 136 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "योग आसन एवं साधना" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Yogasan Evam Sadhana | This book is written/edited by : Dr Satyapal | This book is published by : Pustak Mahal, Delhi | PDF file of this book is of size 2 MB approximately. This book has a total of 136 pages. Download link of the book "Yogasan Evam Sadhana" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. सत्यपालयोग,साधना2 MB136



पुस्तक से : 

नई दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे है, जिसमे हजारों साधक प्रतिदिन योगका अभ्यास करते है और इससे लाभान्वित भी होते हैं। इन केन्द्रों में योग आसन, प्राणायाम, ध्यान, व्यायाम आदि का अभ्यास कराया जाता है। योग संस्थान समय-समय पर योग शिविरो का आयोजन कर साधकोंको शिक्षण देता है।

 

हम अपनी इच्छा से इसे रोक नहीं सकते और ना ही चला सकते हैं। हृदय लगातार धडकता रहता है, हम उसे बंद नहीं कर सकते। आंतो मे गति के कारण भोजन ऊपर से नीचे को सरकता रहता है। प्रकाश के प्रभाव से आंखकी पुतली सिकुड़ कर छोटी हो जाती है। ऐसी गतियां हमारी इच्छा के अधीन न होने की वजह स्वाधीन कहलाती हैं।

 

जैसे राज्य के शासन का जिम्मा कई विभागों के के पास होते हैं और सभी विभाग अपने कार्य की पूर्ति के लिए उत्तरदायी होते हैं, वैसे ही शरीर में भी होता है। कई अगोंसे मिलकर एक विभाग बनता है, इनको संस्थान कहते हैं। संस्थान के सभी अंग एक दूसरे के सहकारी होते हैं। यदि यह सह व्यापार बिगड़ जाए तो शरीरका काम सुचारू रूप से नहीं चलेगा।

 

 

इसका उत्तर स्पष्ट है कि जिस भावनासे योग संस्थान प्रेरित है उसका सर्वत्र अभाव ही दीखता है। आज तो ऐसा लगता है मानों व्यक्ति दूसरे का गला काटने पर तत्पर है। राष्ट्र एक दूसरे का सर्वनाश कर अपने सुखोका महल खड़ा करना चाहता है। सारे संसार में भौतिक सुखों एवं धन प्राप्ति की होड लगी है। किंतु हम यह भी देखते हैं कि विश्वमें ऐसे भी मुनष्य हैं, जिनके पास सभी प्रकार के साधन एवं पदार्थ उपलब्ध हैं फिर भी वह सबसे दुखी हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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