401 हिन्दी निबन्ध पुस्तक पीडीऍफ़ | 401 Hindi Nibandh Book PDF

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401 हिन्दी निबन्ध हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about 401 Hindi Nibandh Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : 401 हिन्दी निबन्ध | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: तनसुखराम गुप्त | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : आकांक्षा प्रकाशन, लक्ष्मी नगर, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 71 MB है | इस पुस्तक में कुल 874 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "401 हिन्दी निबन्ध" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : 401 Hindi Nibandh | Author/Editor of this book is : Tansukhram Gupta | This book is published by : Akanksha Prakashan, Laxmi Nagar, Delhi | PDF file of this book is of size 71 MB approximately. This book has a total of 874 pages. Download link of the book "401 Hindi Nibandh" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
तनसुखराम गुप्तनिबंध, भाषा71 MB874



पुस्तक से : 

वसन्त हृदय के उल्लास, उमंग, उत्साह और मधुर जीवन का द्योतक है। इसलिए वसन्त पंचमी के दिन नृत्य-संगीत, खेलकूद प्रतियोगिताएँ तथा पतंगबाजी का आयोजन होता है। वसन्त मेले लगते हैं। वसन्त पंचमी प्रतिवर्ष आती है। जीवन में वसन्त (आनन्द) ही यशस्वी जीवन जीने का रहस्य है, यह रहस्योद्घाटन कर जाती है।

 

जहाँ जहाँ गंगा का प्रवाह मर्त्यभूमि को स्पर्श करता गया, वह पवित्र हो गई। वहाँ तीर्थ बन गए। गंगा तट पर स्थित हरिद्वार, (मायापुरी) प्रयाग, काशी तीर्थ बन गए। इनका आध्यत्मिक महत्त्व बढ़ गया। सहस्रों जन गंगा तट पर ध्यान, चिंतन करते हुए सांसारिक बंधनसे मुक्त हो गए।

 

रक्षाबन्धन बहिन के लिए अद्भुत, अमूल्य, अनन्त प्यार का पर्व है। महीनों पहले से वह इस पर्व की प्रतीक्षा करती है। पर्व समीप आते ही बाजार में घूम-घूमकर मनचाही राखी खरीदती है। वस्त्राभूषणों को तैयार करती है। 'मामा-मिलन' के लिए बच्चों को उकसाती है।

 

 

होली वसन्त ऋतु का यौवनकाल है। ग्रीष्म के आगमन की सूचक है। वनश्री के साथ-साथ खेतों की श्री एवं हमारे तन-मन की श्री भी फाल्गुन के ढलते-ढलते सम्पूर्ण आभा में खिल उठती है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने फाल्गुन के सूर्य की ऊष्मा को प्रियालिंगन मधु-माधुर्य स्पर्श बताते हुए कहा है- 'सहस्र-सहस्र मधु-मादक स्पशों से आलिंगित कर रही इन किरणों ने फाल्गुन के इस वासन्ती प्रात को सुगन्धित स्वर्ण में आह्लादित कर दिया है।'

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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