आयुर्वेदीय हितोपदेश हिन्दी पुस्तक | Ayurvedic Hitopadesha Hindi Book PDF

   

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आयुर्वेदीय हितोपदेश हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ayurvedic Hitopadesha Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : आयुर्वेदीय हितोपदेश | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: वैद्य रणजित राय देसाई | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : श्री वैद्यनाथ आयुर्वेद भवन लिमिटेड | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 76 MB है | इस पुस्तक में कुल 298 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "आयुर्वेदीय हितोपदेश" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Ayurvedic Hitopadesha | Author/Editor of this book is : Vaidya Ranjeet Rai Desai | This book is published by : Shri Vaidyanath Ayurved Bhavan Limited | PDF file of this book is of size 76 MB approximately. This book has a total of 298 pages. Download link of the book "Ayurvedic Hitopadesha" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
वैद्य रणजित राय देसाईआयुर्वेद, स्वास्थ्य76 MB298



पुस्तक से : 

आयुर्वेदीय हितोपदेश नाम की यह पुस्तक लिखकर वैद्य रणजितरायजी ने आयुर्वेदीय छात्रों तथा अध्यापकों का बड़ा उपकार किया है। सम्पूर्ण वैदिक साहित्यमें अत्यन्त प्राचीन ऋग्वेद है। उस ऋग्वेदसे लेकर अद्ययावत् जो आयुर्वेदीय साहित्य उपलब्ध है, उस सब साहित्य का आलोडन और मन्थन करके उसमें से जो वाक्यरल आयुर्वेद के अध्ययन के लिए अत्यन्त उपयुक्त उन्हें प्राप्त हुए, उनसब को चुनकर वैद्य रणजितरायजी ने इस “आयुर्वेदीय हितोपदेश" नामक निबन्धको ग्रथित किया है।

 

आयुर्वेद के रहस्यवबोधन के लिये संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है, यह सर्ववादिसंमत है। यो आयुर्वेद के ही नहीं, वेदों तक के देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं और उनको सहायता से इनमें प्रतिपादित विषयों को जाना जा सकता है; तथापि यह सर्वदा संभव है कि अनुवादों में अनुवादक के विचारों और समझ की छाप आ जाय।

 

ग्रन्थों में कुछ वचन वेदों से भी संगृहीत किए गए हैं। कारण यह है कि आयुर्वेद के पुनर्जीवन के लिए आयुर्वेद से भिन्न ग्रन्थों का भी दोहन करने की परिपाटी प्रचलित हो गयी है। ऐसे ग्रन्थों में वेद प्रमुख हैं। अतः उनकी भाषा का भी यत्किंचित परिचय कराना असंगत नहीं समझा।

 

 

आयुर्वेद के पुनरुज्जीवन के लिए प्रथमावश्यक कार्यों में एक युगानुरूप विषय प्रधान पाठ्यपुस्तकों का निर्माण है। भगवान धन्वन्तरिकी कृपा से प्राप्त संपदा का यत्किचित् व्यय आयुर्वेद के अभ्युत्थान कार्य में ही करने का हमने विचार किया और तदनुसार जो योजना बनाई उसका एक अंग पाठ्य पुस्तकों का प्रकाशन भी था।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

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