भोज संहिता केतू खंड हिन्दी पुस्तक | Bhoj Sanhita Ketu khand Hindi Book PDF

    


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भोज संहिता केतू खंड हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bhoj Sanhita Ketu khand Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : भोज संहिता केतू खंड | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: डॉ भोजराज द्विवेदी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 4 MB है | इस पुस्तक में कुल 11 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "भोज संहिता केतू खंड" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Bhoj Sanhita Ketu khand | Author/Editor of this book is : Dr Bhojraj Dwivedi | This book is published by : Unknown | PDF file of this book is of size 4 MB approximately. This book has a total of 11 pages. Download link of the book "Bhoj Sanhita Ketu khand" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ भोजराज द्विवेदीज्योतिष, धर्म4 MB11



पुस्तक से : 

ज्योतिष शास्त्र की प्राचीनता वेदोंमें सिद्ध है। प्राचीन काल से ही वेद छह अंगों में ज्योतिष शास्त्र मूर्धन्य स्थान को प्राप्त है। वैदिक काल और वराहमिहिर के बीच 18 ज्योतिषशास्त्र प्रवर्तक धुरन्धर आचार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है।

 

ज्योतिषशास्त्र को नई ऊंचाइयां प्रदान करने वाले तीनों स्कन्धों के निष्णात ज्ञाता दैदीप्यमान सूर्यके समान तेजस्वी वराहमिहिर का सम्पूर्ण साहित्य हमें विधिवत प्राप्त है। परन्तु उनका काल भी संदिग्ध है। अंग्रेजोंके अनुयायी इतिहासकार उनका जन्म ईसा की पांचवीं शताब्दी का मानते हैं जबकि वराहमिहिर ईसा पूर्व राजा विक्रमादित्य उर्फ चन्द्रगुप्त मौर्य के राजकीय पंडित थे।

 

पर दुर्भाग्य यह है कि इन सब ज्योतिषशास्त्र प्रवर्तक आचार्यों का क्रमिक इतिहास हमें प्राप्त नहीं है। चार-पाँच आचार्यों को छोड़कर बाकी सभीकी वास्तविक कृतियां भी ज्योतिषशास्त्र के विद्वानों को प्राप्त नहीं हैं। केवल नाम ही चर्चित है। कई विद्वानों के ग्रन्थ उपलब्ध हैं तो उनके काल का पता नहीं। जिनमें बृहद्पाराशर होराशास्त्र के रचयिता पराशर, भृगुसंहिता के रचयिता महर्षि भृगु, सत्यजातकम् के रचयिता सत्याचार्य, मीनराज कृत बृहद्यवनजातक इत्यादि प्रमुख हैं।

 

 

सूर्यः पितामहो व्यासो, वसिष्ठोऽत्रिपराशरः। कश्यपो नारदो गर्यो मरीचिः मनुरंगिरा॥ लोमेश: पोलिशश्चैव च्यवनो यवनो भृगुः। शौनकोऽष्टादशाश्चैते, ज्योतिष शास्त्र प्रवर्तकाः ॥

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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