चाय के गुण दोष हिन्दी पुस्तक | Chai ke Guna Dosha Hindi Book PDF

  

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चाय के गुण दोष हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Chai ke Guna Dosha Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : चाय के गुण दोष | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: डॉ गंगा प्रसाद गौड़ नाहर | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : तेजकुमार बुक डिपो लिमिटेड, लखनऊ | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 21 MB है | इस पुस्तक में कुल 37 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "चाय के गुण दोष" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Chai ke Guna Dosha | Author/Editor of this book is : Dr Ganga Prasad Gaud Nahar | This book is published by : Tejkumar Book Dipo Limited, Lucknow | PDF file of this book is of size 21 MB approximately. This book has a total of 37 pages. Download link of the book "Chai ke Guna Dosha" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ गंगाप्रसाद गौड़स्वास्थ्य21 MB37



पुस्तक से : 

आयुर्वेद के किसी ग्रन्थ में चाय का उल्लेख नहीं मिलता, जो इसके विदेशी होनेका एक पुष्ट प्रमाण है। वैसे संस्कृत में चाय को श्यामाचर्णा कहते हैं। चीनी भाषा में चाय को 'चा' कहते हैं, और अंग्रेजी में 'टी' या 'टे'। चाय के चीनी नाम 'चा' से भी चाय का जन्मस्थान चीन होना सिद्ध होता है। चीनियों ने चाय के विषय में, मोटी-मोटी किताबें लिखी है।

 

ईसामसीह के जन्म से २७३७ साल पहले चीन में सेन नांग नामक एक राजा हो गुजरा है, चीन में चाय का प्रचलन उसीने किया. वनौषधि चन्द्रोदय के पृष्ठ ८८४ से पता चलता है कि कनफ्युसियस के जमाने में, या ईस्वी सन् से ५५० साल पहले चीन में चाय का उपयोग होता था परन्तु अंग्रेज चाय-इतिहासकारों के अनुसार भारत में चाय के पैदा होने का उल्लेख पिछले सौ सालों से ही माना गया है, और इसका यहाँ अन्वेषण एक अंग्रेज महिला द्वारा हुआ बताया जाता है।

 

मनुष्य शरीररूपी बैटरी में पहले शक्ति संचित होती है, फिर व्यय होती है। शक्ति-संचय विश्राम और नींद से होता है, तथा शक्ति क्षय या थकावट मेहनत-मशक्कत करने से पर भूल से हम थकावट मिटाने के साधनों, विश्राम और नींद को व्यवहार में न लाकर उसकी जगह चाय को व्यवहार में लाते हैं और धोखा खाते हैं।

 

 

चाय कई रूपों में अपने भक्तों के सामने आकर अपनी मोहिनी उन पर डालती है। एक रूप उसका बिल्कुल काला होता है, जिसको 'ब्लैक टी' या काली चाय कहते हैं। दूसरा, बिल्कुल हरा, जिसको ग्रीन टी' या हरी चाय कहते हैं। इसी प्रकार खड़ी पत्ती वाली चाय, धुली चाय, तथा मिश्रित चाय आदि उसके और भी अनेक रंग-रूप हैं। चाय का एक रूप धूल जैसा भी होता है, जिसे 'डस्ट टी' कहते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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