चमत्कार चिंतामणि पुस्तक | Chamatkar Chintamani Book PDF

    

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चमत्कार चिंतामणि हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Chamatkar Chintamani Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : चमत्कार चिंतामणि | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: श्री ब्रह्मानन्द त्रिपाठी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखम्बा विद्या भवन वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 22 MB है | इस पुस्तक में कुल 149 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "चमत्कार चिंतामणि" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Chamatkar Chintamani | Author/Editor of this book is : Shri Bramhananda Tripathi | This book is published by : Chaukhamba Vidya Bhavan Varanasi | PDF file of this book is of size 22 MB approximately. This book has a total of 149 pages. Download link of the book "Chamatkar Chintamani" has been given further on this page from where you can download it for free.


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श्री ब्रह्मानन्द त्रिपाठीआयुर्वेद22 MB149



पुस्तक से : 

आयुर्वेद वाङ्मय-वारिधि के जितने रत्न अब तक प्रकाश में आये हैं उनसे बहुत अधिक संख्या उन रत्नो की है जो अबतक उसके गर्भ में विलीन है। आवश्यकता है ऐसे गोताखोर सामुद्रिकों की जो उन्हें प्रकाश में ला सकें। आयुर्वेद का क्षेत्र ऐसा रहा है जिसमें पठित व्यक्ति भी लोक कल्याण में ही प्रवृत्त होता है क्योंकि आयुर्वेद का चरम लक्ष्य दुःख निवारण ही है।

 

लोलिम्बराज एक शास्त्रज्ञ, सहृदय एवं कविवर वैद्य थे। ऐसे ही अर्थो में 'कविराज' विशेषण सार्थक होता है। इन्होंने अपनी रचनाओं में आयुर्वेद के साथ-साथ कविश्व का ऐसा मणिकाचन योग किया है जो अन्यत्र कहीं नहीं इष्टिगोचर होता । 'वैद्यजीवन' के अतिरिक्त इनको अन्य रचनायें भी महत्वपूर्ण और सद्ग्रहणीय हैं किन्तु दुर्भाग्य से वे उपलब्ध नहीं रहीं।

 

चरक, सुश्रुत, वाग्भट इन तीनो आप संहिताओं के पश्चात् लिखे गये अनेक उत्तमोत्तम विशालकाय चिकित्साग्रन्थ सहस्रो योगो को उर मे पिरोये हुए ग्रन्थ कर्ता के लेखन-काल मे सुलभ थे किन्तु उनमे से कौन योग अधिक उपादेय हैं, कौन नहीं, यह निर्णय लेना साधारण जनता के लिये कठिन था। चिकित्सा कार्य में यह विचिकित्सा न हो, अतएव इस लघुकाय किन्तु सर्वाङ्ग ललित ग्रन्थ रत्न का निर्माण किया गया।

 

 

शास्त्रीय अनुसन्धान या निर्माण में कम ही लोग आ पाते है। फिर भी समय-समय पर प्रतिभाशाली शास्त्रज्ञ वैद्यों ने परम्परा को अपनी रचना में गुम्फित किया। सयोग से इनमें अनेक कारयित्री कवि-प्रतिभा के धनी भी निकले। परिणामत ऐसी अनेक रचनाओं का सृजन हुआ जिनमें आयुर्वेद के साथ-साथ कवित्व का भी अपूर्व संयोग रहा।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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