दश महाविद्या तंत्रसार हिन्दी पुस्तक | Dash Mahavidya Tantrasar Hindi Book PDF


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दश महाविद्या तंत्रसार हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Dash Mahavidya Tantrasar Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : दश महाविद्या तंत्रसार | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : योगीराज यशपाल | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : रणधीर प्रकाशन, हरिद्वार | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 18 MB है | इस पुस्तक में कुल 169 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "दश महाविद्या तंत्रसार" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Dash Mahavidya Tantrasar | This book is written/edited by : Yogiraj Yashpal | This book is published by : Randhir Prakashan, Haridwar | PDF file of this book is of size 18 MB approximately. This book has a total of 169 pages. Download link of the book "Dash Mahavidya Tantrasar" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
योगीराज यशपालधार्मिक18 MB169



पुस्तक से : 

दुर्लभ और सुलभ पाण्डुलिपि तथा प्रकाशित पुराण, आगमादि शास्त्रोंमें अनेकों मन्त्रादि के विविधता से दर्शन होते हैं। यहाँ पर दश महाविद्याओं के प्रमुख एक-एक मन्त्रको प्रस्तुत किया गया है जो कि आपकी उपासना में प्रयोग किये जाने पर सोने में सुहागे जैसा काम करेंगे।

 

यह क्रम चलता ही रहता है जिसके कारण आनन्द और सुखानुभूतिकी उपलब्धि नहीं हो पाती। जीवन और संसार एक मृगतृष्णा जैसा दिखने लगता है। रोते हुए आते हैं और रोते हुए ही चले जाते हैं क्योंकि हम जीवन के उद्देश्य को पूर्ण नहीं कर पाते। कलशमें थोड़ा सा जल, घड़े को बजाया ही करता है। 

 

हम मनुष्यों का एकमात्र चरमलक्ष्य आनन्द की उपलब्धि और सुखोपभोग है। इसे प्राप्त करना मानव जीवनका अधिकार है। यह समूचा जगत आनन्द का उद्भव स्थल है और आनन्द ही हमारा उद्गम स्थान है। आनन्दातिरेक से ही आत्मा जीवन धारण करता है और फिर अंत मे शून्यमें ही विलीन हो जाता है।

 

 

इनका पाणिग्रहण संस्कार महादेव के साथ इनकी अभिलाषानुसार हुआ था। पार्वती जनक दक्ष ने एक यज्ञ किया जिसमें उसने महादेवको आमन्त्रित नहीं किया। जब पार्वती को इसकी सूचना प्राप्त हुई तो उन्होंने शिवजीसे वहाँ चलने का निवेदन करने लगी। महादेव ने उसे अस्वीकार कर दिया। जब पार्वती ने स्वयं जाने की आज्ञा चाही तो शिवजी ने उन्हें पुनः मना कर दिया।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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