कुण्डलिनी जागरण - स्वामी कृष्णानंद हिन्दी पुस्तक | Kundalini Jagran - Swami Krishnanad Hindi Book PDF


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कुण्डलिनी जागरण हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kundalini Jagran Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : कुण्डलिनी जागरण | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : स्वामी कृष्णानंद | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : साधना पब्लिकेशंस, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 36 MB है | इस पुस्तक में कुल 232 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "कुण्डलिनी जागरण" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Kundalini Jagran | This book is written/edited by : Swami Krishnanad | This book is published by : Sadhana Publications, Delhi | PDF file of this book is of size 36 MB approximately. This book has a total of 232 pages. Download link of the book "Kundalini Jagran" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी कृष्णानंदतंत्र-मंत्र, धर्म36 MB232



पुस्तक से : 

एक आदमी बड़ा प्यासा था, उसने एक गड्ढा खोदा। कुछ खोदने के बाद उसने अपना धैर्य खो दिया, फिर उसने उसको छोड़कर दूसरा गड्ढा खोदना शुरू कर दिया। इस तरह धैर्य के अभाव में वह कई गड्ढा खोदता गया, किंतु उसे पानी नहीं मिल पाया और वो मृत्युको प्राप्त हो गया।

 

आपके दादाजी एक बुद्ध पुरुष थे, जिनका सहज योग, अष्टांग योग एवं भक्ति पर समान अधिकार था। वो बड़े भाग्यशाली है तभी तो उन्होंने ऐसे वंशमें जन्म लिया। इनके पिताश्री भी बिहार सरकार में अधिकारी थे। बादमें संन्यास ले लिया। ऐसा ज्ञात होता है कि सिद्धि, साधुता आपको उत्तराधिकार में मिला है।

 

यह भी विडंबना ही है कि हमारे संस्कारहमारे साथ ही हैं। अपना किया हुआ कर्म भोगना ही पड़ेगा। अतएव मनको निर्मल, निर्विकार, निर्जीव करने का नाम ही योग है। श्रेष्ठ कर्मों द्वारा संस्कारों को शुद्ध कर, सतचित्त आनंद होना ही योग है। चित्त को विकृतियोंसे निवृत्त कर परमतत्व में स्थित होना योग है।

 

 

विज्ञान के माध्यम से प्रत्येक सुख उपलब्ध हैं। परंतु आत्मिक शांति के स्तर पर निराश है। लेकिन ऐसा क्यों ? क्या हमारी खोज गलत दिशामें भटक गई है ? धर्म मानव मात्र की मानसिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकता है। भौतिक सुख को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि वह भी उसकी शारीरिक आवश्यकता है। परंतु आज के मानव के लिए भौतिक सुख ही प्रधान हो गया है। 

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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