मांस और अंडे के गुण दोष पुस्तक | Mans aur Ande ke Guna Dosha Book PDF

   

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मांस और अंडे के गुण दोष हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mans aur Ande ke Guna Dosha Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : मांस और अंडे के गुण दोष | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: डॉ गंगा प्रसाद गौड़ नाहर | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : तेजकुमार बुक डिपो लिमिटेड, लखनऊ | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 12 MB है | इस पुस्तक में कुल 24 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "मांस और अंडे के गुण दोष" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Mans aur Ande ke Guna Dosha | Author/Editor of this book is : Dr Ganga Prasad Gaud Nahar | This book is published by : Tejkumar Book Dipo Limited, Lucknow | PDF file of this book is of size 12 MB approximately. This book has a total of 24 pages. Download link of the book "Mans aur Ande ke Guna Dosha" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ गंगाप्रसाद गौड़स्वास्थ्य, आयुर्वेद12 MB24



पुस्तक से : 

मांस को संस्कृत में मांस, आमिष, पिशित, क्रव्य, पलल, तथा पल कहते हैं। हिन्दी में मांस, कलिया, सगवती तथा सगोदी कहते हैं । अरबी में लहम । पंजाबी में मास। फारसी में गोश्त, तथा अंग्रेजी में मीट (Meat) और लैटिन में फ्लेश (Flesh) कहते हैं।

 

मांस शरीर का एक प्रसिद्ध पार्थिव धातु है । यह छोटे-छोटे तन्तुओं (Fibres) का बना होता है जिनका औसतन व्यास १ / ५०० इंच, तथा लम्बाई लगभग १ इंच होती है। मांस, उसमें स्थित रक्त-कणों के कारण रक्तवर्ण नजर आता है। यदि मांस के लोथड़े को कपड़े में बांधकर कसकर निचोड़ा जाय तो वह श्वेत वर्ण का हो जाता है।

 

जो जीव मांस खाते हैं, उनके शरीर से पसीना नहीं निकलता, उनका पसीना पूरे शरीर से न निकलकर केवल उनकी जीभ और उनके पैरों की गद्दियों से आता है जैसे कुत्ता, बिल्ली, चीता और शेर आदि परन्तु जो जीव मांस नहीं खाते अथवा जिनकी प्रकृति मांस खाने की नहीं होती, जैसे गाय, बैल, घोड़ा, भैंस, तथा बकरी आदि, उनके शरीर से पसीना निकलता है।

 

 

जिस प्राणी का मांस ग्रहण करना हो उसके विषय में चर अर्थात् उस प्राणी का आहार-विहार, उस प्राणी के शरीर के अवयव, स्वभाव, रस-रक्तादि धातु, चेष्टाएँ, लिंग, प्रमाण, संस्कार (घृत या तेल में पकाना रूपी संस्कार) तथा मात्रा आदि का विचार कर लेना चाहिए ।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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