मुहूर्त मार्त्तण्ड हिन्दी पुस्तक | Muhurta Martanda Hindi Book PDF


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मुहूर्त मार्त्तण्ड हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Muhurta Martanda Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : मुहूर्त मार्त्तण्ड | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ. सत्येंद्र मिश्र | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : कृष्णदास अकादमी, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 191 MB है | इस पुस्तक में कुल 316 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "मुहूर्त मार्त्तण्ड" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Muhurta Martanda | This book is written/edited by : Dr Satyendra Mishra | This book is published by : Krishnadas Akadami, Varanasi | PDF file of this book is of size 191 MB approximately. This book has a total of 316 pages. Download link of the book "Muhurta Martanda" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. सत्येंद्र मिश्रधार्मिक191 MB316



पुस्तक से : 

उपर्युक्त उल्लेखों और प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि मुहूर्त शब्दका प्रचलन वैदिककाल से ही है परन्तु कालक्रमानुसार इनके नामों में कुछ परिवर्तन होते रहे हैं। जो तैत्तिरीय ब्राह्मण कालमें नाम थे उनमें कुछ परिवर्तन आगे चलकर हुए जो आथर्वण ज्योतिष में हमें देखने को मिलता है।

 

यह ग्रन्थ कई ज्योतिषविषयक पाठ्यक्रमों में है जिसके कारण छात्रों के पठन पाठन हेतु एक सुगम्य टीकाकी अत्यन्त आवश्यकता थी। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मैंने इस ग्रन्थकी अत्यन्त प्रामाणिक संस्कृत टीका मार्त्तण्डवल्लभा के साथ अपनी हिन्दी टीका का नाम भी मार्त्तण्डप्रिया रखा।

 

आगे चलकर इन मुहूर्तों में से कुछ शुभ अशुभ मान लिए गये। जैसे प्रियकार्य मैत्रमुहूर्त में, क्रूरकार्यं रौद्र में, जादू टोना आदि सारभटमें, विवाह भग में इत्यादि इत्यादि। इस प्रकार मुहूर्त का एक तीसरा अर्थ भी प्रचलित हो गया कि वह काल जो किसी शुभ कार्य के योग्य हो उस मुहूर्त का कहा जाने लगा।

 

 

इस प्रकार से यह ज्ञात होता है कि वैदिक काल में जो भी नाम प्रचलित थे वे नाम वेदाङ्गकाल में परिवर्तित हो गए। फिर वेदाङ्ग काल मे जो नाम थे वे वराहमिहिर कालमें परिवर्तित हुए और आजकल भी वहीं नाम प्रचलित हैं। वराहमिहिर का के समयमें जो परिवर्तन हुए उसमें अधिकांश मुहूर्ती के स्वामियों के नाम ही ले लिए गये जैसे रोहिणी ब्रह्मा, नैऋत्य-निशाचर आदि।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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