पार्वण श्राद्ध विधि पुस्तक | Parvan Shraddha Vidhi Book PDF

   

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पार्वण श्राद्ध विधि हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Parvan Shraddha Vidhi Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : पार्वण श्राद्ध विधि | इस ग्रन्थ के लेखक/संपादक है: पंडित खूबचंद शर्मा गौड़ | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : तेजकुमार बुक डिपो लिमिटेड, लखनऊ | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 11 MB है | इस पुस्तक में कुल 38 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "पार्वण श्राद्ध विधि" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Parvan Shraddha Vidhi | Author/Editor of this book is : Pandit Khoobchand Gaud | This book is published by : Tejkumar Book Dipo Limited, Lucknow | PDF file of this book is of size 11 MB approximately. This book has a total of 38 pages. Download link of the book "Parvan Shraddha Vidhi" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
पं. खूबचंद गौड़धर्म11 MB38



पुस्तक से : 

आज कल, देववाणी (संस्कृत विद्या) का प्रचार कम होने के कारण, कर्मकांड को जो क्षति पहुँची है, वह किसी भी विद्वान् कर्मकांडी से छिपी नहीं। प्रायः देखने में आता है कि अधिकांश मनुष्यों की श्रद्धा तो कर्मकांड पर है ही नहीं और यदि कोई-कोई धर्मिष्ठ श्रद्धा संपन्न सज्जन हैं भी, तो उन्हें समय पर, साक्षर कर्मकांड-वेत्ता पंडित का मिलना कठिन हो जाता है।

 

विशेषतया हमारे उन भाइयों को, जो नौकरी-पेशावाले हैं, और भी अधिक कठिनता होती है; क्योंकि उन्हें ठीक समय में नौकरी पर पहुँचना एवं कृत्य भी करना, दोनों ही कार्य आवश्यकीय हो जाते हैं। इन्हीं उपर्युक्त असुविधाओंको देखकर मैंने, तथा निवाजपुर निवासी स्वर्गीय पंडित लक्ष्मीनारायण जी ने यह विचार किया कि पार्वणश्राद्ध की एक टीका ऐसी होनी चाहिए, जिसे पढ़कर केवल हिंदी जानने वाले महाशय भी सरलतापूर्वक स्वयं श्राद्ध कर लें.

 

दोपहर के बाद स्नान करके, सफेद धोती अँगौछा पहिन पवित्र हुआ श्राद्धकर्ता, वस्त्रादि से आच्छादित होकर, श्राद्ध के स्थान में आवे । तब पूर्व की ओर मुँह करके बैठे। जब यह समझे कि अब अन्न सिद्ध हो गया होगा तब पाचिका से पूछे कि (सिद्धम्? अर्थात् क्या पाक सिद्ध हुआ?)

 

 

विचार कार्यरूप में परिणत हो गया । उक्त पंडितजी ने इस पुस्तक की विधि- प्रकाशिनी नामक भाषा-टीका लिखी और मैंने इसको, यथाशक्ति संशोधन करके, इस विश्वविख्यात यंत्रालय में मुद्रित कराया। यह पार्वणश्राद्धपद्धति श्राद्धविवेक के अनुसार लिखी गई है । आशा है, इस पुस्तक से सर्व साधारण को विशेष सुविधा एवं लाभ होगा।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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